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(९४) अनुकळ के प्रतिकुल सर्व संयोगोमां समचित्त पणु आवे छे तेथी स्वभावनी शुद्धि विशेष थाय छे.
(९३ ) वैराग्यनी वृद्धिथी संसारवास कारागृह जेवो भासे छे अने तेथी विरक्त थइ पारमार्थीक सुख माटे यत्न करवा मन दोराय छे.
(९४ ) शात रसनी पुष्टि थता द्रव्य अने भाव करुणानी वृद्धि थाय छे अने शांत रसना समुद्र एवा वीतराग प्रमुनी वचन उपर पूर्ण प्रतीति आवे छे जेथी गमे तेवी कसोटीना वखते पण सत्य मार्गथी चलायमान थवातुं नथी.
(९५ ) प्रशम रसनी पुष्टि थवाथी अपराधी जीवन मनथी पण प्रतिकूळ-अहित चितवन करातुं नथी आवी रीते विवेक पर्तनथी मोक्ष महेलनो मजबूत पायो नंखाय छे अने सकळ धर्मकरणी मोक्ष साधकज थाय छे.
(९६ ) चिरकाळना लाबा अभ्यासथी शांतवाहिता योगे अहिं. सादिक महानतोनी दृढता अने सिद्धि थाय छे, जेथी समीपवर्ती हिसक जीवो पण पोतानो क्रूर स्वभाव तजी दइने शात भावने भजे छे अने सातिशयपणाथी देव दानवादिक पण सेवामा हाजर रहे छे. आवो अपूर्व महिमा शांत-वैराग्य रसनोज छे. एम सर्व मोक्षार्थी जनोने विशेषे प्रतीत थाय छे तेथी तेमा तेओ अधिक प्रयत्न करे छे.
(९७ ) जेमने मन, वचन अने कायामा संपूर्ण स्थिरता प्राप्त थइ छ एवा योगीश्वरो गाममां के अरण्यमा दिवसे के रात्रीमां सरखी रीते स्व स्वभावमांज स्थित रहे छे. कदापि संयम मार्गमां अरति भजताज नथी, सुवर्णनी पेरे विषम संयोगमां चढवाने ते वर्ते छे.
(९८ ) जेओ फक्त अन्यनेज शिखामण देवामां शूरा छे तेओ खरी रीते पुरुषनी गणनामांज नथी. पण जेओ पोतानेज उत्तम "शिखामणो आपीने चारित्र मार्गमा स्थिर करे छे तेओज खरेखर