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(छ) नाटक ग्रन्थ (१) प्रबोधचन्द्रोदय नाटक । हरि बल्लभ । आदि
श्री राधा वल्लभ पद कमल मधु के भाइ । हित हरि वंश बड़ो रसिक, रह्यो तिननि लपटाइ ।। १ ।। ताके चरननि बंदि के, वन चन्दहि सिर नाइ । रचना पोथी की करौं, जाते करें सहाइ ।।२।। कियो प्रबोधचन्द्रोदय जु, नाटक दीनो तोहि । कृष्ण मिश्र रचि बहुत विधि, वहै दिखाउ सुजोहि ॥१६॥ कीरति वर्मा की सभा, तिनकै चित यह चाउ। सो नाटकु नायक अबहि, इनकों सजि दिखराउ ।।१७॥ यह बात गोपाल जु, मोसों कही बनाइ । तातें जब घर जाइ के, आनो जुवति बुलाइ ।।१०।।
अन्त
हरि वल्लभ भाषारच्यो चित में भयो निसंक । श्रीप्रबोध-चन्द्रोदयहि छठओं बीत्यो अंक ।।
समाप्तोयं ग्रन्थः । लेखन काल-१८ वी शताब्दी । प्रति-पत्र १४+१९+१५+१३+१२+१५ । पंक्ति ११ । अक्षर ३२ ।
साईज १०४५। विशेष-राजा कीर्तिवर्मा तथा गोपाल का प्रारंभ मे उल्लेख मात्र है। .
(अनूप संस्कृत लायब्रेरी)