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निवेदन
-::राजस्थान मे प्राचीन साहित्य, लोक-साहित्य, इतिहास और कलाविषयक शोधकार्य करने के लिये उदयपुर विद्यापीठ द्वारा वि० सं० १९९८ में प्राचीन साहित्य शोधसंस्थान की स्थापना की गई थी। योजनानुसार इसके विभागान्तर्गत कई महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियां स्थापित एवं विकसित हो चुकी हैं । जैसे- १- राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, २-चारणगीत माला, ३-राजस्थान गौरव ग्रन्थमाला, ४-राजस्थानी कहावत माला, ५-राजस्थानी लोकगीत माला, ६-स्व० गौरीशंकर हीराचन्द
आमा निवन्ध संग्रह, ७-महाकवि सूर्यमल आसन, ८-शोध-पत्रिका और ९-संग्रहालय आदि ।
सर्वप्रथम हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज का कार्य प्रारंभ किया गया था। उस समय विद्वानो का राजकीय अथवा व्यक्तिगत पुस्तकभण्डारों में प्रवेश पा सकना और वहां के हस्तलिखित ग्रन्थों का विवरण तैयार करना आज से कहीं अधिक कठिन था। किन्तु इस कार्य में सफलता मिली और श्रीयुत्, पं० मोतीलाल मेनारिया एम० ए० द्वारा प्रस्तुत खोज का प्रथम विवरण-ग्रन्थ प्रकाशित कर दिया गया । इस ग्रन्थ के रूप मे द्वितीय विवरण-ग्रन्थ भी प्रकाशित किया जा रहा है । आगे के तृतीय और चतुर्थ भाग भी-एक श्रीयुत् , उदयसिह भटनागर एम० ए० का, दूसरा श्रीयुत् , अगरचन्द नाहटा का प्रेस के लिये प्रस्तुत हैं । आशा है शोध-संस्थान शीघ्र ही इनको भी प्रकाशित करने मे समर्थ होगा । तब तक कई नवीन भाग तैयार हो जायेंगे। चारणगीतमाला के लिये लगभग १०५० गीत अब तक एकत्रित किये जा चुके हैं । और प्रथम-द्वितीय भाग का सम्पादन-कार्य भी समाप्तप्रायः है। राजस्थान-गौरव-ग्रन्थमाला के अन्तर्गत महाकवि चन्द कृत पृथ्वीराज रासो का प्रामाणिक संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है । श्रीयुत्, कविराव मोहनसिंह के सम्पादकत्व और श्रीयुत्, भगवतीलाल भट्ट के संयोजन मे पृथ्वीराज रासो-कार्यालय द्वारा इसके ३३ प्रस्तावों का कार्य समाप्त हो गया है । राजस्थानी कहावत माला की प्रथम 'पुस्तक मेवाड़ की कहावतें' भाग १. सम्पादक श्रीयुत्, पं० लक्ष्मीलाल जोशी एम० ए० एल० एल० वी० प्रकाशित हो चुकी है। द्वितीय पुस्तक 'प्रतापगढ़ की कहावतें' सम्पादक श्रीयुत्, रत्नलाल महता, बी० ए०, एल० एल० बी०
और तृतीय पुस्तक 'राजस्थानी भील कहावतें' सम्पादक-श्रीयुत् , पुरुषोत्तम मेनारिया