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[ ४३ ] बांधिजै तो जयु होइ । हाथी भागे नहीं । गोरोचन सो भोज पत्र मे लिखी हाथी के दांत किवा कांन बांधिजै । ( इसके पश्चात् हाथियो के १४२ नाम लिखे गये हैं) ___इति पालकाप्य रिषि विरचितायां तद्भाषार्थ नाम अमर सुबोधिनी नाम भाषार्थ प्रकाशिकायां समाप्ता शुभं भवतु।
लेखन-सं० १७२८ वर्षे जेठ सुदी ७ दिने महाराजाधिराज महाराजा श्रीअनूपसिहजी पुस्तक लिखापितः । मथेन राखेचा लिखतम् । श्री ओरंगाबाद मध्ये ।
प्रति-पत्र ९५ । पंक्ति ९ । अक्षर ३० । साइज १०||४५।। विशेष-हाथियो के प्रकार और उनके रोगो का सुन्दर वर्णन है ।
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (६) गंधक कल्प-आंवलासार । दोहा ४६ । कृष्णानंद । आदिगंधक कल्प आंवलासार, दूहा ।
सुन देवी अब कहत है, गंधक विध समझाय । अजर अमर होय जगत में, जो कोइ एसै खाय ॥ १ ॥ यथा जोग्य सब कहतु है, भिन्न २ समझाय ।
जब लू द्वन्य आकाश है, तब लू काल न खाय ॥ २ ॥ अंत
कृष्णानद विचारके, कह्यौ पदारथ सार । सिद्ध होय या युक्त (जगत?) में, अमर देव आकार । ४५ ॥ गंधक विधि ए हे चूकी, ओर कहे उपदेश ।
जरा मोत कु जीत के, जीवत रहै हमेश ।। ४६ ।। लेखन-१९ वी शताब्दी। प्रति-पत्र २ । पंक्ति १३ । अक्षर ४० । साइज ९||४४।।
. (अभय जैन ग्रन्थालय) (७) डंभ किया। पद्य २१ । धर्मसी । सं० १७४० विजय दशमी । आदिभादि का पद्य प्राप्त नहीं हैं। भंतसतरसे चालीसे विजय दशमो दिने, गच्छ खरतर जग जीत सर्व विद्या जिनै । विजय हर्ष विद्यमान शिष्य तिनके सही, कवि धर्मसी उपगारे, उभ क्रिया कही ॥ २१ ॥