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[ १८ ] अंत
बड़े ग्रन्थ देखन करें, जे आरस सुकुमार ।
तिनको हित नंदराम कवि, रच्यो नयो परकार ॥ ३३ ॥ इति श्रीमन्महाराजाधिराज अनूपसिह विरचितायामलसमोदिन्यामलंकार निरूपण नाम तृतीय प्रमोद संपूर्ण।
लेखनकाल–१८ वी शताब्दी। प्रति-गुटकाकार । पत्र ११ । पंक्ति १८ । अक्षर १२ । साइज़ ६४९॥ विशेप-नायिकावर्णन प्रथमप्रमोद पद्य ६४, नायकवर्णन द्वितीय प्रमोद पद्य १८, अलंकार वर्णन तृतीय प्रमोद पद्य ३३, कुल पद्य ११५ ।
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (५) कवि वल्लभ । कवि जान । साहजहां राज्ये । सं० १७०४
आदि
अगम अगोचर निरंजन, निराकार कार । अविगत अविनासी अलख, निश्चय अपरंपार ॥ १ ॥
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रवि ससि धू आकास धर, पानी पवन पहार । तो लो अविचल जान कहि, साहिजहां संसार ।। ८ ॥ जो लो या संसार में, निसि दिन आवे जांहि । तो लो अविचल राज सों, चगता जगती मांहि ॥९॥ कहत जान कवितान हितु, ग्रन्थ करी उच्चारु । अलंकार समुझाइहौं, अपनी मति अनुसार ॥ १० ॥ कवित करन की इच्छ जिदि, ताके आवत काम । यातं राज्यों समुझि के, कवि वल्लभ यह नाम || ११ ॥
अंत
साहिजहां जगपनिह दाइक, चैन की मैन सरूप सुहावै । यंस अक्बर सत्ति है लायक, वैन को ऐन सु सूर कहावै । मोहन मूरति अत्ति है मोहत, माननि मान गुमानि मिटावै।
जान अनुपम गत्ति है सोहन, कामनि प्रान ढइसि लगावै । इसके बाद कई चित्र-काव्य हैं। लन्यनकाल–१८ वी शताब्दी । प्रति-गुटकाकार । पत्र ९६। पक्ति १८ । अक्षर २२ । साइज़ ६४९।।
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय)