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(१०) कृष्णचरित्र
(११) रसग्राहकचंद्रिका ( रसिकप्रिया की टीका )
(१२) रसरत्नमाला
(१३) सरसरस सं० १७९१-९४ ( १४ ) भक्तविनोद
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(१५) जोरावर प्रकाश
(१६) वैताल पंचविसति ( महाराजा जैसिह सवाई की आज्ञा से रचित) ( १७ ) काव्यसिद्धान्त सं० १७९८
(१८) रसरत्नाकरमाला
इनमे से अमर चंद्रिका की रचना महाराजा अमर सिंह जोधपुर के नाम से हुई लिखना गलत है वास्तव मे वे अमरसिह ओसवाल जैन थे । जोरावरप्रकाश रसिक प्रिया की टीका का ही नाम है जो कि बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंहजी के लिये सं० १८०० में बनाई गई थी । रसरत्नाकरमाला संभवतः रसरत्नमाला ही होगी । रसरत्न की रचना सं० १७६८ वैसाख रविवार को हुई थी और उसकी टीका कवि ने स्वयं मेड़ता के ऋषभगोत्रीय ओसवाल सुलतानमल के लिये सं० थी । रसग्राहकचंद्रिका की रचना सं० १७९१ वैसाख सुदी ८ को जहाँनाबाद के नशक (रु?) ल्ला खांन के लिये की गई थी । रस सरस और सरसरस दोनों ग्रन्थ एक ही हैं। इसकी रचना सं० १७९० के वैसाख सुदी ६ को आगरे मे कवि-मंडली के कथन से हुई थी । खोज रिपोर्ट व मेनारियाजी के विवरणी भाग १ में इसके रचयिता का नाम राय शिवदास लिखा है । भक्तविनोद और भक्तिविनोद दोनों प्रन्थ एक ही हैं।
१९८०० श्रावण में की
सन् १९३२-३३ की खोज से प्राप्त आपके रचित शृंगारसार ( सं० १७८५ अषाढ़ सु० ) से आपके कई अप्राप्य ग्रन्थों का पता चलता है । उनमे से छन्दसार का विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया गया है । शृगांररस में उल्लेख होने के कारण इसका रचना काल सं० १७८५ से पूर्व निश्चित होता है । आपके अन्य प्राप्त प्रन्थ श्रीनाथविलास, भक्तमाला, कामधेनुकवित्त, कविसिद्धान्त का अन्वेषण होना परमावश्यक है । अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में इनके अतिरिक्त रासलीला या दानलीला नामक ग्रन्थ की प्रति प्राप्त है । गत वर्ष सरस्वती में सूरतमिश्र नामक एक सुन्दर लेख भी प्रकाशित हुआ
देखने मे आया था । श्रभाजी ने जोधपुर के इतिहास मे इन्हे महाराजा जसवन्तसिहजी का विद्यागुरु खोज विवरण के अनुसार बतलाया है यह संभव नहीं है ।