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[ १६० ] गुरु का नाम शान्ति हर्प और नैणसी के पुत्र जैतसी के लिये प्रस्तुत ग्रन्थ बनाया गया है । मिश्रवन्धुविनोद के पृ० १००४ में लाभवर्द्धन के रचित उपपदी अन्य का उल्लेख है पर मुझे यह नाम अशुद्ध प्रतीत होता है।
(७८) लालदास (३४)- इनके "विक्रमविलास" ग्रन्थ का विवरण इस ग्रन्थ में दिया गया है उसके प्रारंभ में कवि ने अपने दो अन्य ग्रन्थों का उल्लेख किया है जिनमें से उषा नाटक (कथा) की प्रति सन् १९०९ से ११ की खोज रिपोर्ट में प्राप्त है। इनकी माधवानलकथा अभी तक कहीं जानने में नहीं आई अतः उसकी खोज होना आवश्यक है।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका के वर्ष ५१ अंक ४ में सन् १९४१ से ४३ की खोज का विवरण प्राप्त हुआ है उसमें लिखा है कि विक्रमविलास की दो प्रतियां प्राप्त हुई हैं . जिनके अनुसार कवि का नाम लाल या नेवजी लाल दीक्षित था । ये विक्रम शाहि राजा के आश्नित थे। जिनके बड़े भाई का नाम भूपतशाहि पिता का नाम खेमकरण और पितामह का नाम मलकल्याण था । एक प्रति में इस ग्रन्थ का रचना काल १६४० लिखा है।
मिश्रवन्धुविनोद के पृ० १०७१ में लालदास के उषा कथा और वामन चरित्र का निर्देश है कविताकाल सं० १८९६ के पूर्व और मनोहर दास के पुत्र लिखा है । हमारे नम्रमतानुसार उषा कथा उपरोक्त लालदास रचित ही होगी और उसका रचना काल १७ वीं शताब्दी निश्चित ही है । वामनचरित्र के रचयिता लालदास प्रस्तुत कवि से भिन्न ही संभव हैं।
१७ वीं शताब्दी के कवि लालदास की इतिहाससार (सं० १६४३) प्रसिद्ध ही है एवं अन्य कई ग्रन्थ भी इसी कवि के नाम से उपलब्ध हैं पर उन सभी का रचयिता एक ही कवि है या समनाम वाले भिन्न भिन्न कवि हैं प्रमाण भाव से नहीं कहा जा सकता।
(७९) वल्लभ (१३०)-आपने हृदयराम के समय में या उनके लिये स्वरोदय सम्बंधी छोटा सा ग्रन्थ बनाया।
(८०) विजयराम (८७)-शायत दुर्गेश के ग्राम समदरड़ी (लूणी के पास) में आपने शनिकथा वनाई । कवि ने रचनाकाल का भी निर्देश किया है पर उससे संवत् का अंक ठीक ज्ञात नहीं होता।
(८१) विनयसागर (२)-इन्होंने अंचलगच्छीय कल्याणसागर सूरि के समय-सं० १७०२ कातिक सुदी १५ को, अनेकार्थ नाममाला बनायी। ...