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१५८ मिश्रबन्धुविनोद में इसी नाम वाले तीन कवियों का उल्लेख किया गया है। इनमें से सूदन कवि के सुजानचरित्र में उल्लखित लच्छीराम ही प्रस्तुत लच्छीराम हो सकते हैं। अन्य लच्छीराम १९ वीं शताब्दी के हैं।
(७५) लक्ष्मीचन्द (९९)-ये खरतरगच्छीय जैनयति थे । यथा स्मरण ये अमरविजय के शिष्य थे । इनका एक वैद्यक ग्रन्थ इनकी परम्परा के उपाध्याय जयचन्दजी के भंडार बीकानेर में उपलब्ध है।
(७६) लक्ष्मीवल्लभ-(४१, ४७)-आप भी खरतरगच्छीय' उपाध्याय लक्ष्मीकीर्तिजी के शिष्य थे। अपने कई काव्य ग्रन्थों में इन्होंने अपना नाम राजकवि' दिया है । १८ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध विद्वानों में से आप भी अन्यतम थे। इनके कालज्ञान ( १७४१ सावन सुदी १५) और मूत्र परीक्षा का विवरण प्रस्तुत प्रन्थ में दिया है । इनके अतिरिक्त आपकी छोटी मोटी पचासों रचनाएं है जिनमें से उल्लेखनीय प्रतियों की सूची नीचे दी जारही है:
१. अभयंकर श्रीमति चौपाई, सं० १७२५ चै० सु० १५. २. अमरकुमार रास ३. विक्रमादित्य पंचदंड चौपाई, सं० १७२८ फा०व०५ ४. रात्रि भोजन चौपाई, सं० १७३८ वै० सु० १० बीकानेर ५: रत्नहास चौपाई, सं० १७२५ चै० सु० १५ ६. भावना विलास, सं० १७२७ पौ० ब० १० ७. नवतत्व भाषा, सं० १७४७ वै० सु० १३ हिंसार ८. चौवीसी स्तवन . ९. दोहावावनी १०. कवित्व बावनी ११. छप्पय बावनी १२. सवैया बावनी १३ भरत बाहुबलि भिडाल छंद १४ महावीर गौतम छंद १५ देशान्तरी छंद १६ उपदेश वतीसी १७ चैतन वतीसी, सं० १७३९