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[ १५४ (५७ ) भूप (११८)-मिश्रवन्धुविनोद पृ० २९३ में अज्ञात कालिक प्रकरण के अन्तर्गत भूप कवि एवं उनके "चंपू सामुद्रिक" ग्रन्थ का भी उल्लेख है । हमें प्राप्त प्रति सं० १७२५ को लिखित होने से कवि का समय इससे पूर्ववर्ती निश्चित है ।
(५८) मनरूपविजय (१०२-१०६-१०८-११२-११६)-ये पूर्व उल्लखित तपागच्छीय भक्तिविजय के शिष्य थे । इनके रचित (१) गिरनार-जूनागढ़ (२) नागोर (३) पोरबन्दर (४) मेड़ता (सं० १८६५ कार्तिक सुदि १४) और (५) सोजत की गजलें (सं० १८६३ कार्तिक सुदि १५) का विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया गया है। सं० १८७८ में वैशाख शुक्ला १५ सोमवार के एक लेख से ज्ञात होता है कि जैसलमेर दरवार ने इन्हे लोद्रवा में उपासरा बना के दिया था।
(५९) मयाराम (१३०)-ये दादूपन्थी थे। इनका निवास स्थान दिल्लीजहानाबाद था । शिव-सरोदय ग्रन्थ के आधार से इन्होंने स्वरोदय ग्रन्थ बनाया।
(६०) मलूकचन्द्र (५३)-वैद्यहुलास ग्रन्थ जो कि तिब्बसहावी का अनुवाद है, मे आपने अपने श्रावक कुल का उल्लेख किया है । अत : ये जैन श्रावक थे। संभवतः ये १९ वीं शताब्दी मे ही हुए हैं।
(६१) महमद शाहि (६७)-ये पिरोजशाह के वंश में तत्तारशाह के पुत्र थे। इनकी रचित संगीतमालिका की प्रारंभ-त्रुटित प्रति प्राप्त हुई है। संभव है कवि ने प्रारम्भ में अपना कुछ परिचय एवं समय दिया हो।
(६२) महासिह (१)-इनकी "अनेकार्थ नाममाला" की प्रति सं० १७६० मे स्वयंलिखित हमारे संग्रह में है । इसमें इन्होंने अपने को पांडे बतलाया है।
(६३ ) मान, (प्रथम ) (२५)-आप खरतरगच्छीय उपाध्याय शिवनिधान के शिष्य थे । इनकी रचित "भाषा कविरस मंजरी" का विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ मे है। इनके अतिरिक्त आपके अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं:
(१) कीर्तिधर सुकौशल प्रबन्ध सं० १६७० दीवाली, पुष्करण (२) मेतार्य ऋषि सम्बन्ध सं०७ पुष्करण (३) क्षुल्लककुमार चौपाई (४) हंसराज वच्छराज चौपाई सं० १६७५ कोटड़ा (५) उत्तराध्ययन गीत सं० १६७५ सावन वदी ८ गुरु (६) अर्हदास प्रबन्ध
विजयदशमी जूनपुर (७ ) मेघदूत वृत्ति सं० १६९३ भादवा सुदि ११