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________________ । १४७ बड़े सिद्धहस्त थे। इनके विषय में मेरा एक स्वतन्त्र लेख शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। (२४) चेतनविजय (३, १३, ७३)-ये तपागच्छीय रिद्धिविजयजी के शिष्य थे। लघुपिगल की अन्तप्रशस्ति के अनुसार इनका जन्म बंगाल में हुआ था। दीक्षा लेकर तीर्थयात्रा करते हुए पुनः बंगाल मे आने पर इन्होंने कई ग्रन्थो की रचना की जिनमें से 'आत्मबोध नाममाला' सं० १८४७ माघ सुदी १० और लघुपिंगल सं० १८४७ पौष बदी २ गुरुवार बंगदेश और जम्बूरास सं० १८५२ सावन सुदी ३ रविवार अजीमगंज में रचित ग्रन्थों के विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिये गये हैं। इनके अतिरिक्त श्रीपाल रास सं० १८५३ फागन सुदी २ अजीमगंज और सीता चौपाई सं० १८५१ वैसाख सु० १३ अजीमगंज, उल्लेखनीय हैं । स्वर्गीय बाबू पूरनचन्दजी नाहर कलकत्ता के गुलाबकुमारी लाइब्रेरी मे इनके रचित अनेक फुटकर रचनाओं का एक बड़ा गुटका है। मिश्रबन्धु विनोद पृ० ८३६ में भी इनका उल्लेख आया है। (२५ ) चेलो (९९) ये रतनु गोत्रीय पनजी के पुत्र एवं जिलिया गाँव के निवासी थे सं० १९०९ के वैसाख बदी मे उन्होंने आयू शैल की गजल बनाई। (२६ ) चैनसुख (५४)-आप खरतरगच्छीय जिनदत्त सूरि शाखा के लाभ निधानजी के शिष्य थे। इनकी परम्परा मे यति रिद्धिकरणजी आज भी फतहपुर मे विद्यमान है। इन्ही के संग्रह मे आपकी शतश्लोकी भाषाटीका की प्रति उपलब्ध हुई है जिसकी रचना सं० १८२० भाद्रवा बदी १२ शनिवार को महेश की आज्ञा व रतनचन्द के लिये हुई है। अाफ्का अन्य ग्रन्थ 'वैद्य जीवन टवा' भी उपलब्ध है । सं० १८६८ मे फतहपुर मे इनकी छतरी शिष्य चिमनीरामजी ने बनाई थी। आपकी परम्परा के सम्बन्ध में विशेष जानने के लिये हमारे लिखित युग प्रधान श्री जिनदत्त सूरि ग्रन्थ देखना चाहिये। (२७ ) जगजीवन (७०)-इनके हनुमान नाटक की प्रति अपूर्ण मिलने से आपका समय व अन्य जानकारी अज्ञात है । (२८) जगन्नाथ (२६)-जैसलमेर के रावल अमरसिह के लिये इन्होने रतिभूषण नामक ग्रन्थ सं० १७१४ के जेठ सु० १० सोमवार को बनाया। (२९) जटमल (७६-१०५-११३)-ये नाहरगोत्रीय जैन श्रावक थे। मूलतः वे लाहौर के निवासी थे पर पीछे से जलालपुर में रहने लगे थे। हिन्दी साहित्य में श्रापके रचित 'गोरा-बादल की यात' ने अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की, जिसका कारण एक
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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