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[ १४५ ] श्री जैनराजसरिसघर, दयावल्लभ गणि तास सिखि।
सुप्रसाद तास खेतल, सुकवि लहि जोड़ि पुस्तक लिखि ॥ ६४ ॥ आपकी उदयपुरगजल भारतीय विद्या में एवं चित्तौड़गजल फार्वस सभा त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।
मिश्रबन्धुविनोद के पृ० ९६६ में खेतल कवि का नामोल्लेख है पर वहाँ इनके रचित ग्रन्थ का नाम व समय का र्निदेश कुछ भी नहीं है । अतः वे यही थे, या इनसे भिन्न, नहीं कहा जा सकता ।
(१६) खुसरो (४)-आप हिन्दी साहित्य संसार में सुप्रसिद्ध हैं। मिश्रबन्धु विनोद पृ० २६६ में इनका व इनके नाममाला ग्रन्थ का उल्लेख पाया जाता है। खोज रिपोर्टों में अभी तक इनकी ख्वालकबारी नाम माला की नागरी लिपि में लिखित प्राचीन प्रति का कहीं भी उल्लेख देखने में नहीं आया । इसलिये प्रस्तुत विवरणी में इसका आदि अन्त भाग दिया है।
(१७) गनपति (८८)-ये गुर्जर गौड़ सुरतान देव के पुत्र थे। इन्होने सांगावत जसवन्त की रानी अमर कंवरी और आम्बेरनाथ की पत्नी कुन्दन बाई के लिये सं० १८२६ बसन्त पंचमी को शनि कथा की रचना की । ये वल्लभ सम्प्रदाय के गिरधारीजी के मन्दिर के पुजारी थे।
__ श्रीयुत मोतीलालजी मेनारिया के सम्पादित खोज विवरण भाग १ में इनके सुदामाचरित्र का विवरण दिया गया है । वहाँ कवि का नाम गणेशदास लिखा है । 'गणेश और गनपति एकार्थवाचक नाम है अतः ये दोनों अभिन्न ही प्रतीत होते हैं।
(१८) गुलाबविजय (१०१, १०३)-आप तपागच्छीय यति थे । इन्होने 'कापरड़ा गजल' कम धज खुसालसिह के शासन काल में (सं० १८७२ चै० ब० ३ को बनाई ) और जोधपुर गजल की सं० १९०१ पौष बदी १० को रचना की।
जैन गुर्जर कवियो भा० ३ पृ० १७५ में रिद्धिविजय शिष्य गुलाबविजय के समेदशिखर रास सं० १८४६ में रचे जाने का उल्लेख है पर वे इनसे भिन्न ही संभव हैं।
(१९) गुलाबसिंह (३६)-ये प्रतापगढ़ राज्य के संचेइ गाँव के अधिकारी थे। ओमाजी के प्रतापगढ़ के इतिहास में वहाँ के राजा उदयसिह ने महडू गुलाबसिंह को पैर में स्वर्णाभूषण का सन्मान देकर प्रतिष्ठा बढ़ाई, लिखा है। आपके रचित साहित्य महोदधि की रचना इन्हीं उदयसिंहजी की आज्ञा से हुई थी मुझे उसका नृपवंश