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राज वे ही हैं जिनके रचित हिन्दी एवं राजस्थानी के लगभग ५०० दोहं उपलब्ध हैं। यदि यह अनुमान ठीक है तो आप खरतरगच्छीय (चंदन मलयागिरी चोपई के रचयिता ) भद्रसार के शिष्य थे। आप अच्छे कवि थे-आपकी निम्नोक्त अन्य रचनाएं हमारे संग्रह में हैं।
(१) गुणबावनी सं० १६७६ वै० सु० १५ बरई। (२) भजन छत्तीसी सं० १६६७ फा० ब० १३ शुक्रवार, मांडावइ ।
भजन छत्तीसी में कवि ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि यह ग्रन्थ ३६ वर्ष की उम्र में बनाया अतः इनका जन्म सं० १६३१ निश्चित होता है। आपने अपने पिता का नाम भद्रसार, माता का नाम हरषा, भ्राता सूरचंद्र, मित्र रत्नाकर, निवासस्थान जोधपुर, स्वामी उदयसिह, पत्नी पुरवणि, पुत्र सूदन का उल्लेख किया है। इन बातो को स्पष्ट करने वाले दो कवित्त नीचे दिये जा रहे है:
साम समपे उदयसिंह वास समपे योधपुर । समपि पिता भद्रसार जन्म समपे हरषा उर । समपि भ्रात सूरचंद्र मित्र समपे रयणायर । समपि कलित्र पूवणि समपि पुत्र सुदन दिवायर। रूप अने अवतार ओ मो समपे आपज रहण । उदैराज इह लधौ इतौ, भव भव समपे मह महण ॥ ३२ ॥
सौलहेसे सतसढ़, कीध जन भजन छत्तीसी । मोनुं वरस छत्रीस, हुव मनि आवइ ईसी । यदि फागुण शिवरात्रि, श्रवण शुक्रवार समूरत । मांडावाइ मझारि, प्रभु जगमाल पृथी पति । भद्रसार चरण प्रणाम करि, मैं अनुक्रमि मंड्या कवित ।
त्रैलोक छत्तीसी बांचता दुःख जा नासै दुरति ॥ ३७ ॥ उदयराज या उदयकृत चौवीसजिन सवैयादि का संग्रह भी उपलब्ध है वे सब हिन्दी मे हैं। प्रमाणाभाव से उनके रचयिता प्रस्तुत उदयराज ही हैं या उससे भिन्न अन्य कोई कवि है, नहीं कहा जा सकता:
मिश्र बन्धु विनोद भा० १ पृ० ३९६ में उदयराज जैन जति बीकानेर रचित फुटकर दोहे, गुणमासा तथा रंगेजदीन महताव, रचना १६६० के लगभग, आश्रयदाता महाराजा रामसिंहजी को लिखा है इनमें से फुटकर दोहे तो ठीक इन्ही के हैं बाकी
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