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[ १२५ ] गिरवर माहे सुमेर विराजै, ज्योति चक्र जिम सूरज छाजै । गच्छ माहे खरतर गच्छ राजा, जाकै दिन दिन भधिक दिवाजा ॥ ९१ ॥ श्री जिनसिंह सूरि सुखकारी, नाम जपै सब सुर नर नारी । जाकै शिण्य सिरोमण कहिये, पद्मकीर्ति गुरु वर जसु लहियै ।। ९२ । विद्या च्यार दस कंठ बखाणे, वेद च्यार को अरथ पिछाने । पदमरस मुनिवर सुख दाई, महिमा जाकी कही न जाई ॥ ९३ ॥ रामचन्द मुनि इन परि भाख्यौ, सामुद्रिक भाषा करि दाख्यो ।
जां लगि रहि ज्यो सूरिजी चन्दा, पढहु पंडित लहु आणन्दा ॥ ९४ ।। प्रति-१९ वी शताव्दी। पत्र २ अपूर्ण । हमारे संग्रह मे है । अंत भाग बीकानेर के जिनहपसूरि भण्डार के बंडल नं० १६ की प्रति से लिखा गया है। यह प्रति सं० १७९९ की लिखित १३ पत्रो की है।
विशेष-ग्रन्थ मे दो प्रकाश है, प्रथम मे नर लक्षण मे ११७ पद्य एवं द्वितीय नारीलक्षण मे ९४ पद्य, कुल २११ पद्य है ।
( जिनहर्षसूरि भंडार) (१३) सामुद्रिक शास्त्र भाषाबद्ध । पद्य १८८ । नगराज । अजयराज के लिये रचित ।
अथ सामुद्रिक शास्त्र भाषावद्ध लिख्यते । आदि
एक बालक सब लक्षण परे, देखत जाई दोष सब दूरे । भागम अगम आदि मुनि साखी, ज्युं सामुद्रिक प्रथे भ खी ।। १॥ आगम लछन अग जणावै, सबे ऊपध पूरे फल पावै। ताका अब कहूँ विचारा, समझत कहत सुनत सुखकारा ॥ २ ॥
अन्त
सुगुन सुलछन समति सुभ, सज्जन को सुख देत । भाषा सामुद्रिक रचों, भजेराज के हैत ॥ ६ ॥ जो जानइ सो जान, दाता दोहि अजान फुनि ।
जानवनो अरू दान, अजेराज दुहु विधि निएंन ॥ ६७ ॥ इति श्री सामुद्रिक शास्त्रभाषा बद्ध पुरुष स्त्री सुभाशुभ लक्षण सम्पूर्ण । लेखनकाल- संवत् १७७४ ना वैशाख सु० १ दिनै । प्रति-(१) पत्र ८ । पंक्ति १३ से १५ । अक्षर ४० से ४८ । साइज ९॥४४
(२) पत्र १० । पंक्ति ११ । अक्षर ४० । साइज १०४४।