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देश परदेश जाण होई, अथ सौदा करण होईं बेचण होई x सगाई करणी होई सौ कीर्जे, वैगी एक आदमी तेरा वही करता है तो रद्द होगा ।
अन्त
भवतु ।
राजा प्रजा सुखी बैमार कुं कुसल दर हाल सुं छुटेगा x सर्व भला हो ॥ सर्व कांम प्रमांण चढ़ेगा । रमल शकुन विचार समाप्तम् शुभं लेखनकाल - १८ वी शताब्दी । पं० सरूपा लिखतं । प्रति- पत्र ३ | पंक्ति १५ । अक्षर ४८ | साइज १०x४ । विशेष- इस प्रकार की अन्य कई शकुनावलियें पाई जाती हैं ।
(१०) शीघ्रबोध वचनिका
भादि
बिघन कदन बारन करहु कृपा गिरिजा
लेखनकाल - सं० १९१९ ।
अन्त
बदन, सिद्ध सुतन, दीजै
प्रति- गुटकाकार
विशेष - शीघ्रबोध ज्योतिष ग्रन्थ की भाषा टीका है ।
सदन
बानी
शकुन
श्री
(यति ऋद्धिकरणजी भण्डार, चूरू )
(११) सकुन प्रदीप | जयधर्म । सं० १७६२ आश्विन ५ | पानीपत मे रचित |
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आदि
शास
जयधरम
( अभय जैन ग्रन्थालय )
गुण एन ।
बेन ॥
स्वस्ति श्री जिन राज मुक्ति मन्दिर वर नायक ।
दायक ॥।
गुणधारक ।
विधारक ||
सकल जगत सुखकार सरस मङ्गल बहु
सजल जलद सम अङ्ग, विमल छिन छिन मन कमठ शठ मान, इति भय पाप सर्पादि राज पद्मावती, जाके घंछित युग कर जेरी चहुं नति करत, नित पार्श्वनाथ भव भय हरण ||
चरण ।
मंझार, निरखे लोक जु अति कठिन ।
विचार, संस्कृत ते भाषा करी ॥। १९१ ॥