________________
[ ११९ ] लेखन-संवत् १७२५ मिति सावन वदी अमसा १५, पोथी लिखा जानसाही। प्रति-पत्र ४३ । पंक्ति ७ । अक्षर २४ । साईज ९४४।
(अनूप संस्कृत पुस्तकालय )
(४) ज्योतिष सार भाषा-कवि विनोद । कृष्णदत्रा । भदि
अथ गणेस स्तुति रिद्धि सिद्धि गणाधिपति नर महेश सुत का धर ध्याने । हृदय काल में कितेरे हृदय कमल में दे ज्याने ॥ टेक ।। अरुण कुसुम की माल कण्ठ और परशु कमल है मिनके कर । अरुण माल में लाल सिंदर दिदा अरुण अधर । सर्व भङ्ग है मनुधर का गज सीस विराजे अति सुन्दर । मुख मुखधाहन कि तुम तो मुषक वाहन लम्बोदर । बन्धु मित्र सुत दार गेह में क्यों होता हे अग्याना । कृष्ण दत्त श्री कृष्ण भक्ति बीन कभी नही होती गुजराने । भूत भविष्यत वर्तमान जो तिन काल बतलाता है। जौति शास्त्र सब शास्त्रशिरोमणि, बिना भाग्य नहीं आता है ।। टेर ।।
अन्त
शिखरि स्युगमा तुम्ह से, पाद मैन में रोग। .
राज पोडित कृश तनु में भया मिला देव संयोग ।।१२।। । इति केतु फलं । इति श्री कृष्णदत्त विप्र विरचित जोतिसार भापा कवि विनोद नवग्रह फलं समाप्तं ।
लेखन काल-२० वीं शती । प्रति-पत्र ८ से २६ । पंक्ति ११ । अक्षर २८ से ३२ । साइज १०४५।
(अभय जैन ग्रंथालय) (५) तुरकी सुकनावली। आदि
हमल १ सुणि हो पृच्छक इण काल के श्रावणे पाणंद खुशी, नेक वखत है दुस अरु चाड दफै होइगा, विरहा तेरा मन चित्या होइगा, इच्छा पूजैगी मन ||१||