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( १९ ) वीकानेर गजल । उदयचन्द्र यति । सं० १७६५
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आदि---
अन्त
अन्त
शाद मन समरूं सदा, प्रणमुं सद्गुरु महियल में महिमानिलो, सन जन कुं इसधा मांहे घीकपुर, दिन दिन सर्व लोक सुखिया वसै, राज करे पर दुख भंजनरिपु दलन, सकल शास्त्र विध जाण ।
अभिनव इन्द्र अनूपसुत, श्री
महाराज
दल
बांकी धर गढ चावो प्यारे चर्क
Die
बंकड़े, रिपु में, निरख्यों
चैत्र 1
पाय |
सुखदाय ॥ १ ॥ दाव |
चढते
हिन्दु राव | २ ॥
सुजाण ॥ ३ ॥
कीना जेर ।
लेखनकाल -- १९ वीं शताब्दी ।
प्रति–पत्र ६ । पंक्ति १३ | अक्षर २५ | साईज ५४३॥
वीकानेर || ४ ||
भूलगा
पूरी कीनी ।
संवत सतर पैंसठ रे मास, चैत्र में गजल माना शारदा के सुसाइ सु रे, मुझे खूब करण की मति दीनी ॥ कानेर सहिर अजब है व्यारूं चक में ताकी प्रसिद्ध दोनी । उदैचन्द भानन्द सु युं कहै रे, चतुर माणस के चितमाहिलीनी ॥ चावो च्यारे चक में नवखण्ड मेरे, प्रसिद्ध बधो वीकानेर बाइ | छत्रपति सुजाण सा जुग जुग जीवो, ताके राज्य में बाजते नौबत थाइ ॥ मनसुं खूब वणाई कै रे सू सुनाइ के लोक कविन्द आणंद सु यु कहै रे गृधू धू धूं धूं खूब
सुवास पाइ । गजल गाइ ॥
(अभय जैन ग्रन्थालय ) (२०) बड़ोदरा गजल | दीप विजय । सं० १८५२ मार्ग शीर्ष शुक्ल १ शनिवार सादि
घटप्रद ( पत्र ) क्षेत्र है वीराक, लटणी बहत है नीक । फिरती गिरद दो कोशांक, क्यों रहें शत्रु की हौंसक || आगुं राष दामाजीक, जैसा व्याय रामादिक । गोला म्याल से सन्ध्याक, किल्ला सेतना
वंभ्याक
कलश सवैया
पूरण किन्तु मजल अवल अठार से बावन चिस श्रावर वार मृगशिर तिथि प्रतिपक्ष पक्ष
उल्लासें ।
राजासें ॥