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गजल
जोधहि नगर । कैसाक, मानु इन्द्रपुर जैसा । कहियै सोम तिन केतीक, अपनी बुध है जेतीक ॥
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पोसह मास घलि वदि पक्ष, दसमी तिथा भृगु परतक्ष ।
खमजो सुकवि चित्त हि लाय, बालक रीत कीनी धाय ॥ १०२ ॥ लेखन-सं १९०१ रीगजल जोधपुररी है पं० नान विजय पं० गुलाव विजयजी कृत।
(प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय ) (१०) जोधपुर नगर वर्णन गजल । पद्य ४९ । हेम । सं० १८६६ कार्तिक सुद १५ ।
आदि
दोहा
समरूं गणपत सारदा, धरूं ध्यान चित्त धार । ज' गजल जोधाण की, निपट सुणो नर नार || १ ||
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मुरधर देश है मोटाक, तिहां नहीं काहे का तोटाक ।। जिसमें शहर है जोधान, वणूं ताहि मिष्ट हो धान । २॥
धली अठार छासठ वर्ष, हिकमत करी काती हर्ष । निपट ही पूर्णिमा तिय नीक, ठावी गजल कीनी ठीक ॥ ४६॥ तप गच्छ गच्छ में सिरताज, रिधु जिणंद सूरही राज । मुनि वरनेम मही में मौत, कई कवि शिष्य हेम कर जोड़॥४७॥
कवित्त योधनयर जगजाण इन्द्रपुर ही सम ओपत । वाजत वन्ज छत्तीस नित्य उच्छव कर नरपति । राज ऋद्ध बढ़ रीत प्रीत नर नार रु पेखो । अही सूर चंद अडिग दुनी चाड नर थे देखो । घाह जी वाह भोपम घडिम मनुष्य घणा सुख माण री। कवि दिए जिसढ़ी कही जग शोभा जोधाण री ॥ ४७ ॥
(प्रतिलिपि-अभयजैन ग्रन्थालय)