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(६) दिल्ली राज-वंशावली । किशनदास । औरंगजेब के राज्य में ।
आदि
अंत -
ॐ नम । अथ राजावली लिख्यते ॥
ॐकार का ध्यान लगाओ, शिव सुत चरन आनि मन लावौ । समरे आदि भवानी भाई, गुरु किरपा तैया बुद्धि पाई । दिल्ली पति जो राजा भए, तिन भूपति के नामु गिनए । प्रथमे कृत युग हरि प्रगटीया, चारि अवतारि वपु धरि आया ।।
भन्त
औरंग जेब साह आलमगीर सम जग सिरताज । निस वज्या डंका धर्म का, त्रय लोक में अवाज । कवि महाराजा जु भनै, किशनदास करै आसीस । तुम राज सुथिर करौ जुग जुग लाख वीस पचीस । यथा जुगतै बुद्धि भाही, तथा भछर कीन । जहाँ दीन होइ सो सवारि पजो दोष मुझे न दीन ।
विशेष—– इस ग्रन्थ मे द्वापुर युग सोमवंश वर्णन से लगाकर अकबर तक का वर्णन उपरोक्त कल्ह रचित वंशावली से ज्यो का त्यो उठाकर रख दिया गया है । (बृहद् ज्ञान भंडार, प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय )
(७) दीवान अलिफखां की पैड़ी । जान कवि ।
आदि
श्री अलिक खां' कीपैड़ी लिखते ।
पहले अल्लाह सुमिरिये, जिन्ह वौल जिलांवण कारणें, रक्खै मानस दे सारे नहीं, सो सोई जिन्ते जांन कहि, जिस
सुभर उपाया ।
नहीं काया ।
कर
वोढ
सुभाया ।
खुदाया ।
सोलह से
की
इकईस मैं जनमे उजले क्यामखां ara संवत हुवा तिपासिया लेखे वैकुंठ पहुंचे भलिफ खां छह दीया जांण ।
परवाण ।
दीवाणा |
चौहाणा |
इति श्री दीवांन अलिखां जी की पैड़ी संपूर्णा । समाप्ता ।
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