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[ ७४ ] प्रति प्राप्त न होने से नहीं दिया गया ।
मादिभंत
पाचक पद धारक भए, ऋदिविजय गुरु देव । तिनके शिष चेतनविजय, नहीं ज्ञान को भेद ॥ १७ ॥ श्री गुरु देव दया किया, उपजी मन में ज्ञान । भाषा जंबू धरित की, रचना रची सुजान ।।१।। संवत अठारे बाच (व!) ने, श्रावण को है मास । शुकल तीज रविवार को, पूरो ग्रन्थ विलास ॥१॥ वंग देश गंगा निकट, गंज अजीम पवित्र । श्री चिन्तामणि पासको, देवल रचा विचित्र ।। २० ॥ सतरै शिखर सुहावनौ, गुम्टी घ्यार सुचंग । शोभै कलश सुवर्ण के, इकइ सरुप अभंग ।। २१ ॥ ऊपर चौमुख राजते, श्री सीमंधर देव । भाव भगति चित लायके, सब जन करते सेव ॥ २२ ॥
(जयचन्द्रजी भंडार)
(६) जम्बू स्वामी की कथा भादि
अथ जंबूस्वामी की कथा लिख्यते एक समै श्री महावीर स्वामी राजगृही नगरे समवसर्या । राजा श्रेणिक वाणी सुर्णे छै । एता महं एक देवता आयो महाऋद्धवंत। श्री भगवंत से पूछ स्वामा मेरी थिति केती है । भगवंतजी ने कहा सात दिन आऊखा तेरा है । देवता सुण के आपणे स्थानक पहुँचा । तद श्रणिक पूछ स्वामी ए देवता कौन है कहां उपजैगा । तद श्री भगवान कहयो ए देवता वूस्वामी का जीव छै हला केवली होयगा।
अंत
हे श्रेणिक एह जंवुना पांच भवना दृष्टांत संक्षेपें जाणिवा । अनेरा ग्रन्थनि विषइ विस्तार प्रचुर घणो होसी । इहां संक्षेप छई। ए जंबुनु चरित्र सांभली ने सद्दहसी ते आराधक जीव कहया । ए जंवूना अध्ययन ने विपै एकविंशमो उद्देसम् ।
इति श्री जंबूस्वामी की कथा सम्पूर्णम् । लेखनकाल–१९ वी शताब्दी । प्रतिगुटकाकार । पत्र ५७ से ७७ । पंक्ति ११ । अक्षर २७ । साईज ८४५।।।।
(अभय जैन ग्रन्थालय)