________________
[ 69
इस पद्य में "च य" को अलग-अलग पढने से अर्थ तो कोई निकला ही नही। पता नही पिशेल को यह बात क्यो नही सूझी कि वाक्य के बीच "च" जैसा व्यजन जैसा का तैसा नही बना रह सकता । दोनो को मिलाकर "चय" बनता है जो सस्कृत "त्यज" का तद्भव है।
इसी प्रकार पिशेल ने कई जगह आशुद्ध पढ जाने की भ्रान्तिया की हैं । प्रो० मुरलीधर बनर्जी ने अपने द्वारा सम्पादित देशीनाममाला की भूमिका मे इस प्रकार के कई उदाहरण दिये है। वहा उन्होने ऊपर दिये गये दो उदाहरणो के अतिरिक्त 1-147-115, 2-30-27, 2-81-66, 3-25-21, 6-131-114, 7-20-17 तथा 7-40-34 मे भी इसी प्रकार का पाठगत प्रमाद बताया है साथ ही शुद्ध पाठ भी दे दिया है। उनका कथन है कि इस प्रकार यदि गाथाओ के पाठ को शुद्ध करके देखा जाय तो इनसे निश्चित ही एक सुन्दर माहित्यिक अर्थ की व्यजना होती है । "रयणावली" की ये गाथाए तो कही-कही" "गाहोसत्तसई" मे निहित गाथागो के काव्य सौन्दर्य से भी वढकर दिखायी पडती है। यदि ये ग्रार्याएँ आचार्य हेमचन्द्र के द्वारा विरचित है तो निश्चित ही उनमे अद्भुत कवित्वशक्ति थी । अन्त मे वे इस निष्कर्ष पर पहंचते हैं कि यदि गाथाम्रो को शुद्ध करके पढा जाये तो निश्चित ही ये काव्य-प्रेमियो के लिए अद्भुत रस सयुक्त होगी। पिशेल और उनके शिष्य इनसे रसग्रहण भले ही न कर सके ।
"देशीनाममाला" से प्राचार्य हेमचन्द्र ने उदाहरण के रूप मे 634 गाथाए लिखी हैं। ये गाथाए विषयवस्तु और वातावरण-दोनो ही दृष्टियो से गाथा सप्तशती" के समीप रखी जा सकती हैं। भारतीय साहित्य परम्परा मे “सतसई" नरन्थो की परम्परा बहुत प्राचीन है। हो सकता है प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी इसी
1
Introduction II PP XLIII to LI Banerjee "If the illustrative Geathos of Hemahandra which have appeared to pichel as examples of extreme absurdity or nonsense' are read correcting the errors made by the copyists in the manner explained above, they will yield very good sense"
Banarjee, Introduction II PLI "As the Gathas read in this way (correcting errors) give a good sense, they can no looger be regarded as examples of “incredible stupidity.” They will be appreciated, it is hoped by every lover of poetry as a remarkable feot of ingenuity worth of Hemchandra and for beyond the capacity of his (Pichel's) disciples to whom Pichel is inclined to ascribe them"
Banerjee-Introduction II PLI