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________________ ___68 ] "हे युवक । अवश्य ही तेरे पीछे पीछे पाने वाली युवती ने तुझे अपने महावर भरे पैरो से ठोकर मारी है जिसके कारण तू अशोक वृक्ष के समान प्रफुल्लित हा उठा है।" उपर्युक्त अर्थ को देखकर कौन ऐमा सहृदय साहित्यिक व्यक्ति होगा जो हेमचन्द्र के उच्चकोटि के कवित्व में अविश्वास करेगा। उसी प्रकार अनेकी स्थती पर पिशेल को भ्रान्तिया हुई । उन्होने शुद्ध पाठ न होने के कारण ही इस प्रकार अर्थगत दुरूहता अनुभव की थी। उपर्युक्त कारिका में "यावच्च" का अर्थ और नव तक निश्चित ही अर्थगत दुस्हता का जनक है । दोनो पदो को मिलाकर पढा हुया “यावक" पद “महावर" का अर्थ देता है । यह अर्थ पाते ही पद्य मे एक उच्चकोटि का कवित्त्वपूर्ण प्राशय व्यजित होने लगता है। यह वात तो माहित्य में सर्वथा प्रसिद्ध ही है कि अशोक मे पुष्प तभी पाते है जब कोई मदमिक्तनवयौवना अपने पालक्तक लगे चरणो से उस पर प्रहार करती है। युवक की प्रसन्नता का कितना व्यजनापूर्ण कारण इन पक्तियो में बताया गया है। इसी प्रकार का एक उदाहरण और भी द्रष्टव्य हैपिशेल द्वारा दिया गया पाठ प्रोहकरि पोहढ़ च य प्रोलु कि च सारवेसुधर । श्रोचुल्ले प्रोलिम दट्ट, प्रोलिप्पिही तुह गनन्दा ।। 1-121-153, पृ० 70 सस्कृतछाया हसनशीले हास्य च च छन्न रमण क्रीडाच समारचय गृहम् । चुल्ल्येकदेश उपदेहिका दृष्ट्वा हसिष्यति तव ननन्दा ।। प्रो० वनर्जी द्वारा परिशुद्ध पाठ अोहकरि प्रौहट ढ चय अोलु कि सारवेसुघर । श्रोचुल्ले प्रोलिम दठ्ठ अोलिप्पिही तुह नन्दा ।। छाया हसनशीले हास्य त्यज छन्मरण क्रीडाच समारचय गृहम् । चुल्ल्येकदेश उपदेहिका दृष्ट्वा हसिष्यति तव ननन्दा ।। "हास्य रत वाले । अपनी हसी और छन्नरमण क्रीडा को त्याग घर को साफ सुथरा करो नही तो तुम्हारे रसोई घर के चूल्हे के आस-पास सफेद चीटियो को रेंगते देखकर तुम्हारी ननँद हँसी करेगी।"
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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