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66 ] चाहते हैं वहां स्पष्ट रूप से सकारण अपने मत का पाख्यान करते है। 1 47 में उन्होने 'अवडाक्किय' और अवडक्किय' इन दो शब्दो को अलग-अलग किया है। पहले के कोशकारो ने इन दोनो शब्दो को समानार्थी बताया था, पर हेमचन्द्र ने उन शब्दो के विपय मे उत्तम ग्रन्यो की छानबीन करके अपना निर्णय दिया-अम्माभिस्तु सारदेशी निरीक्षणेन विवेकः कृत.। इसी प्रकार कही-कही विवाद पटा हो जाते पर वे अत्यन्त सीधे-सादे ढग से 'केवलम् सहृदया प्रमाणम्' कहकर विवाद की समाप्ति कर देते हैं । प्राचार्य हेमचन्द्र की इन्ही विशेषतायो को ध्यान में रखते हुए 'जीगफीड गोल्डश्मित्त ने कहा था-'देशीनाममाला' उत्तग-श्रेणी की मामग्री देने वाला ग्रन्थ है ।' और यह उत्तम सामग्री 'देशीनाममाला' की वृत्ति (टीका) मे निहित है।
___ इस प्रकार 'देशीनाममाला' की भाषा वैज्ञानिक महत्ता इस बात मे तो है कि यह 'देशी' शब्दो का प्रत्यास्यान करने वाला एक मात्र ग्रन्य है, परन्तु वृत्ति को अलग कर देने से वह मूल्यहीन सा हो जायेगा। इस ग्रन्थ की वृत्ति इसकी प्रागरूपा है । इस वृत्ति के माध्यम से हेमचन्द्र ने लम्बी परम्परा मे हुए शब्दो से सम्बन्धित अध्ययन को एक ही स्थान पर स्पष्ट कर दिया है । 'देशीनाममाला' मे पायी हुई उदाहरण की गाथाए
प्राचार्य हेमचन्द्र ने 'देशीनामाला' की मूलगाथानो पर वृत्ति (टीका) लिखने के के बाद उन शब्दो का प्रयोग बताने के लिए कुछ उदाहरण भी दे दिये है । उदाहरण की ये गाथाए ‘एकार्थ' शब्दो की टीका के बाद दी गयी हैं । 'अनेकार्थ' शब्दो के प्रत्याख्यान मे प्राचार्य ने कोई भी उदाहरण की गाथाए नहीं लिखी है । उदाहरण की ये गाथाए अत्यन्त कवित्वपूर्ण और तत्कालीन युगजीवन को प्रत्यक्ष कराने वाली हैं । उदाहरण की ये गाथाए स्वय हेमचन्द्र द्वारा रचित हैं या बाद मे इनके शिष्यो ने लिखा, इस विषय पर थोडा विवाद अवश्य है पर अधिकतर विद्वान् इन्हें प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा ही रचित मानते है । इन पद्यो का स्वरूप भी यही द्योतित करता है कि प्राचार्य ने देशी शब्दो को आसानी से कण्ठस्थ किये जाने की सुविधा के लिए इन पद्यो की रचना की होगी।
रिचर्ड पिशेल ने देशीनाममाला की भूमिका मे हेमचन्द्र के इन पद्यो की बडी कडी आलोचना की है। उनका विचार है कि ये पद्य अधिकतर निरर्थक और केवल शब्दो का उदाहरण मात्र दे देने के लिए लिखे गये है। उनकी दृष्टि मे ये 1 जीगक्रीड गोल्डश्मित्त-होयत्शे लिटेराट्ररत्साइट ग 2, 1109 । 2. Pinchel-Introduction to Desinammala P 29-30 II Edition