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देशीनासमाला : स्वरूप-विवेचन
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प्राचार्य हेमचन्द्र एक महान् भापाविद् थे । उन्होने भापा विवेचन से सम्बन्धित कोई भी समस्या अधूरी नहीं छोड़ी । सस्कृत भाषा का व्याकरण लिखने के बाद उन्होने प्राकृत तथा अपभ्रश का व्याकरण लिखकर इस क्षेत्र मे स्ववैशिष्ट्य का प्रतिपादन किया। उन्होने इस व्याकरण की पूर्ति के लिए बाद मे धातुपाठ, उणादि प्रकरण, लिङ्गानुशासन आदि भी जोड़ा। इतना कर लेने पर भी वे रुके नही । उन्होने भाषा मे प्रयुक्त होने वाले शब्दो का अनुशासन पूर्ण करने के लिए कुछ कोश भी लिखे । । "देशीनाममाला" एक ऐसा ही कोशग्रन्थ है जिसकी रचना आचार्य ने अपने व्याकरण ग्रन्थ "सिद्ध हेमशब्दानुशासन" के अष्टम अध्याय की पूर्ति के लिए की। इस बात का उल्लेख वे "देशीनाममाला" के अष्टमवर्ग की अन्तिम कारिका और उसकी व्याख्या मे स्पष्ट रूप मे कर देते है
इग्र रयणावलिणामो देशीसद्दाण सगहो एसो । वायरणसेसलेसो रइनो सिरि हेमचन्द्र मुनिबइणा ॥
___ दे०ना० 8177, पृ 77 इत्येप देशी शब्द सग्रह स्वोपज्ञशब्दानुशासनाष्टमाध्यायशेषलेशो रत्नावलीनामाचार्य श्री हेमचन्द्रेण विरचित इतिभद्रम् ।"
प्राचार्य कृत प्रस्तुत देशीकोश ही इस अध्याय की चर्चा का प्रमुख विषय है ।
1. अभिधानचिन्तामणि 2 अनेकार्थ संग्रह, 3 निघण्टशेष 4 "रयणायली' 2 जो प्राकृत और अपने श भापाओ के व्याकरण का आख्यान करता है।