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________________ [ 31 धर्मों की समृद्धि मे योग देने के साथ ही उनका सम्मान भी करे । राजा होने के बाद कुमारपाल ने भी इसी परम्परा का पालन किया। इन ऐतिहासिक प्रमाणो से अलग कुछ साहित्यिक प्रमाण और स्वय प्राचार्य हेमचन्द्र की उक्तिया हैं जिनसे स्पष्ट हो जाता है कि कुमारपाल ने अपने जीवन के अन्तिम दिनो मे जैन धर्म स्वीकार कर लिया था। यशपाल द्वारा रचित "मोहराज पराजय" नामक नाटक मे कुमारपाल के सात्विक और आध्यात्मिक जीवन की पूर्ण झाकी मिलती है । अत कुमारपाल ने जैव धर्म स्वीकार कर लिया था, इसमे आशका नही रहती । राजा कुमारपाल ने अनेक मन्दिर बनवाये । भिन्न-भिन्न स्थानो पर 1440 विहार बनवा कर धर्म प्रचार के लिए बहुत बडा प्रयास किया । यदि इन दोनो मतो को एकत्र समन्वित कर देखा जाये तो यह कहा जा सकता है कि कुमारपाल यद्यपि जीवन भर शैव था फिर भी हेमचन्द्र के प्रभाव से उसने अपने जीवन के अन्तिम दिनो मे जैन धर्म मे आस्था दिखायी होगी । कुमारपाल के जीवन मे आचार्य हेमचन्द्र का बहत बडा स्थान था। वे उसके पूज्य धर्म गुरु ही __ नही, रक्षक भी थे । अत उनका सम्मान करने के लिए कुमारपाल द्वारा जैन धर्म का स्वीकार किया जाना न तो असभव ही लगता है और न असगत ही । "त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित" की प्रशस्ति से उपयुक्त तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है_ "चेदि दशार्ण, मालवा, कुरु, सिन्धु इत्यादि दुर्गम प्रदेशो का विजेता चालुक्यराजा कुमारपाल जो मूलराज का उत्तराधिकारी तथा परमार्हत था एक दिन आचार्य के समक्ष विनम्रतापूर्वक झुककर कहने लगा मुनिश्रेष्ठ | आपके द्वारा आज्ञा पाकर मैंने अपने राज्य मे उन सभी कार्यो को बन्द करा दिया है जो नरक की अोर ले जाने वाले है जैसे जुआ खेलना, मदिरा पीना, नि सतान मतव्यक्ति की सम्पत्ति का हडप लेना आदि । मैंने पृथ्वी को अर्हत (जैन) मन्दिरो से भर दिया है प्रादि ।' ___ इन सभी प्रमाणो को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि कुमारपाल के जीवन पर हेमचन्द्र का बहुत बड़ा प्रभाव था। "प्रबन्ध कोश" के अनुसार कुमारपाल राजनैतिक मामलो मे भी हेमचन्द्र की सलाह लेता था, यहा तक कि राज्य शासन के उत्तराधिकार से सम्बन्धित समस्याए भी वह प्राचार्य के सामने रखता था । 1 त्रिष्टिशलाकापुरुषचरित-श्लोक पृष्ठ 16-18 ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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