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[ 25 (2) सोमप्रभाचार्य का कुमारपाल-प्रतिबोध तथा मोहराजपराजय नामक नाटक ।।
(3) स्वय हेमचन्द्र के अन्य ग्रन्थो मे प्राप्त विवरण । आचार्य के छन्दोऽनुशासन के 20 श्लोक, देशी नाममाला या रमणावली के 105 पद त्रिषष्टिश्लाकापुस्षचरित की कुछ पक्तिया इसी ग्रन्थ का प्रशस्तिपर्व आदि सभी कुमारपाल के जीवन पर प्रकाश डालते हैं ।
दयाश्रयकाव्य के अनुसार भीम प्रथम के बडे पुत्र का नाम क्षेमराज था। छोटे पुत्र का नाम कर्ण था । क्षेमराज ने अपनी धार्मिक वृत्ति के कारण राज्य शासन स्वीकार न कर कर्ण को सौप दिया और मरम्वती के किनारे दधिस्थली मे तपस्या करने लगे । क्षेमराज को देवप्रसाद नाम का एक पुत्र था । जब कर्ण ने अपनी गद्दी मिद्धराज को सौपी तो उसने उसे यह निर्देश किया कि वह देव प्रसाद पर दयादृष्टि रखते हुए उसकी देखभाल करता रहे । परन्तु देवप्रसाद कर्ण के साथ ही परलोकगामी हपा । मरने के पहले उसने अपने पुत्र त्रिभुवनपाल को जयसिंह की रक्षा मे छोड दिया था । कुमारपाल इसी त्रिभुवनपाल का पुत्र था । इसी प्रकार का विवरण चित्तौडगढ मे प्राप्त एक अप्रकाशित अभिलेख तथा कुमारपाल प्रतिबोध मे मिलता है ।
उपर्युक्त घटना को एक ऐतिहासिक तथ्य मानने में कुछ आपत्तिया अवश्य हैं । यदि कुमारपाल जयसिंह के ही परिवार का था तो फिर जयसिंह ने स्वेच्छा से उसे अधिकार क्यो नही दे दिया। वह उसको मरवा डालने के लिए क्यो प्रयत्नशील रहा ? प्रभावक चरित मे दिये गये कुमारपाल से सम्बन्धित विवरण से इस समस्या पर थोडा प्रकाश पडता है अत उसका विवेचन समीचीन होगा
___ "महाराज भीम ने अपनी एक अत्यन्त स्वामिभक्त दासी बकुला देवी या चौला देवी से विवाह कर लिया। इस दासी से हरिपाल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । हरिपाल के पुत्र का नाम त्रिभुवनपाल था । कुमारपाल इसी त्रिभुवनपाल का पुत्र था। माता की ओर से निम्न वर्ग का होने के कारण ही कुमारपाल जयसिंह की घृणा का पात्र बन गया था ।
1 यशपाल कृत।
प्राकृमद्व याश्रय काव्य-श्लोक सख्या 70-771 3 इस अभिलेख का उद्धरण डा0 गौरीशकर हीराचन्द्र ओझा ने अपने ग्रन्थ "राजपूताने का
इतिहास (भाग 1, पृ0 318-19) मे दिया है । 4. प्रभावक चरित पृ0 77।