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________________ 302 ] कोलन पर ही इन शन्नो को नद्भव कह दिया गया है, जबकि स्थिति कुछ और ही है। नमन नन्दो को नाति प्राचार्य हेमचन्द्र ने ऐसे शब्दो का प्रयोग भी अर्थ की इष्टिमेटी देनी गन्दी रे बीच किया है। यहा भी उनका ध्यान शब्दो के लोक ही ही पोर गया है. माहिविक प्रयोगो की अोर नहीं । इस वर्ग के शब्दो के प्रतिकाजधान जब्द हैं । इन शब्दो मे वातगत अतिशय योग सर्वत्र लक्षित विधान माना है । नत में ही उपमों के योग ने यातुगत अर्थ बदलते हुए देखा गता है । प्रहार, विहार, याहार, महार-सभी का अर्थ अलग है । दे. ना की नमाक्ति नभत्र पसाबली में भी यही अर्यातिपय योग देखा जा सकता है । सभी प्रात धारणागे ने प्राकृत की घानुग्रो को आदेश द्वारा तद्भव स्वीकार कर किया । दे ना केन्दी में ऐसी अनेको धातुप्रो का प्रयोग हुआ है। परन्तु पनि योग में उनका प्रमिन्न हो गया है । जैसे प्राष्टुिन प वशतितम नृतवानु प्रायड्ड है-जिसका अर्थ व्या-पृ- यदि हार्ग भिन्न हो गया है । प्रामपा-:च्छा । नाम-'मवध' या मभावना के अर्थ में प्रयुक्त म 7--नारेबान पर हमना । -हिमा जान अबरा करता। ती प्रामाविद्धान प्रनितम् है, ग्रामनिग्रो (ग्राश्रित ) का अर्थ गया है, मालकिन का अर्थ लगडा है न कि सजा हुग्रा । ऐसे अनेक 1472 में देगनबने हैं, जो स्वरूप से तो तदभव लगते हैं, पर त्रिगना की है। प्राचार्य हेमचन्द्र जहा भी ऐसे शब्दो का मकलन -:: : --में नेवि यह तदभव भी हो सकता है, परन्तु अर्थ 7221 दिगो आमने पर वे अपने पत्र के देशीकाने मतच नहीं जाने ? नरें द्वारा गिनाये गये अनेको तदभव शब्दों न म त्र पर्ग को ही महत्ता देते देखे जाते हैं। ---, MP4 पाना दिसली वे वित्तु न परवाह नही करते ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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