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________________ [ 21 प्रभावकचरित का उपर्युक्त विवेचन जयसिंह और हेमचन्द्र के माहित्यिक सम्बन्धो को स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है । सक्षेप मे यह कहा जा सकता है कि हेमचन्द्र का भाषाविद् व्यक्तित्व बहुत कुछ जयसिंह के सम्पर्क और सहयोग से निर्मित है। प्राच र्य हेमचन्द्र केवल बौद्धिक ही नही एक उच्चकोटि के नीतिज्ञ एव धार्मिक भी थे। नीति और धर्म के क्षेत्र मे भी जयसिंह प्राचार्य हेमचन्द्र से बहुत अधिक प्रभावित थे । इस आशय के विवरण प्रभावक चरित, कुमारपाल प्रबध तथा हेमचन्द्र और जयसिंह से सम्बन्धित अन्य प्रवन्धो मे प्राप्त हो जाते हैं । यहा सभी का उल्लेख न कर ऐसी ही एक घटना का उल्लेख समीचीन होगा मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा से एक बार जयसिंह ने विभिन्न धर्मो के ज्ञातायो से ईश्वर, धर्म और मुक्ति का पात्र कौन हो सकता है आदि प्रश्न अपनी शका के रूप मे सामने रखे । प्रत्येक धर्म के पण्डितो ने अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन तत्त्वो की व्याख्या की । जयसिंह किसी भी की व्याख्या से संतुष्ट न हो सके। उन्होने हार-थक कर आचार्य हेमचन्द्र की शरण ली । आचार्य ने उन्हे एक पौराणिक कथा सुनायी "शेखपुर मे शाम्ब नामक एक सेठ और यशोमति नाम की उसकी स्त्री रहती थी। पति ने अपनी पत्नी से अप्रसन्न होकर एक दूसरी स्त्री से विवाह कर लिया। अब वह नवोढा के वश मे होकर बेचारी यशोमति को फूटी आखो से देखना भी बुरा समझने लगा । यशोमति को अपने पति के इस व्यवहार से बडा कष्ट हुआ और वह प्रतिकार का उपाय सोचने लगी। एक बार कोई कलाकार गौड देश से आया। यशोमति ने पूर्ण श्रद्धा भक्ति मे उसकी सेवा की, और उससे एक ऐसी औषधि ले ली, जिसके द्वारा पुरुष पशु वन सकता था । यशोमति ने आवेशवश एक दिन भोजन मे मिलाकर उक्त औषधि को अपने पति को खिला दिया, जिससे वह तत्काल बैल बन गया। अब उसे अपने इस अधूरे ज्ञान पर बडा दुख हया और वह सोचने लगी कि बैल को पुरुष किस प्रकार बनावे । लज्जित और दुखित वह जगल मे पास वाली भूमि मे एक वृक्ष के नीचे बैल रूपी पति को घास चराया करती थी और बैठी-बैठी विलाप करती रहती थी। दैवयोग से एक दिन शिव और पार्वती विमान पर बैठे हुए आकाश मार्ग से जा रहे थे । पार्वती ने उसका करुण विलाप सुनकर शकर भगवान से पूछा स्वामिन । इसके दु ख का कारण क्या है ? शकर ने पार्वती का समाधान किया और कहा कि इस वृक्ष की छाया मे ही इस प्रकार की औषधि विद्यमान है जिसके सेवन से यह पुन पुरुप बन सकता है। इस सवाद को यशोमति ने भी सुन लिया । उसने तत्काल ही
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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