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कश्मीर प्रदेश के पाठ व्याकरणो के मगाने की बात को लेकर पिणेल जैसे कुछ पाश्चात्य विद्वानो ने प्राचार्य हेमचन्द्र की मौलिकता पर आक्षेप करना चाहा है। उनका यह आक्षेप हेमचन्द्र द्वारा लिखे गये मस्कृत व्याकरण पर भले ही लागू हो, परन्तु इसी व्याकरण के अगभूत प्राकृत-व्याकरण, अपभ्र श-व्याकरण, धातुपाठ, गणपाठ, उणादि सूत्र, लिंगानुशासन देशीशब्दसग्रह, पर्यायवाची शब्दो का संग्रह (अभिवान चिन्तामणि) आदि इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि प्राचार्य हेमचन्द्र व्याकरण शास्त्र के अद्वितीय नाता थे । भापा के विभिन्न अगों का इस भाति एकत्र विवेचन परम्परा मे किसी प्राचार्य ने नहीं किया है।
प्रभावक चरित मे आगे की घटनायें भी उल्लिखित हैं ।
'हेमचन्द्र ने काश्मीर देश से लाये गये पाठो व्याकरण के ग्रन्यो का भलीभाति अध्ययन कर एक आश्चर्यजनक एव सर्वथा नवीन व्याकरण ग्रथ की रचना कर दी, जिसका नाम 'सिद्ध हेमचन्द्रशब्दानुशासन'' रखा गया। सभी व्याकरण के ग्रन्यो में इसे श्रेष्ठ माना गया । उस युग के पण्डितो ने भी इसे व्याकरण का अधिकारी ग्रथ स्वीकार किया ।
इस व्याकरण के प्रत्येक पद के अन्त मे उन्होंने चालुक्यवगीय नरेशो की प्रशसा में एक-एक श्लोक लिखा । पूरे ग्रन्य की कई प्रतिया बनाकर भारत के प्रत्येक प्रदेश मे भेजी गयी। वीस प्रतिया काश्मीर देश भी भेजी गयी जिन्हे 'वाग्देवी' (मरस्वती) ने बड़े सम्मान के साथ अपने पुस्तकालय मे रखा । काश्मीर से लाये गये आठ व्याकरण ग्रन्यो का मुष्ठ ज्ञान रखवे वाले एक कायस्थ विद्वान को हैमणब्दानुशासन के अध्यापन का भार राज्य की ओर से सौंपा गया । प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की पचमी को इससे सम्बन्धित परीक्षाये ली जाती थी। इन परीक्षामो में सफल होने वाले विद्यार्थी राजा की ओर से सम्मानित किये जाते थे।
अपने व्याकरण की इस प्रशस्ति ने हेमचन्द्र को बहुत अधिक उत्माहित किया और उन्होने और भी कई ग्रन्थ लिखे । इनमे कोणग्रन्य काव्य के अगो के विवेचकग्रन्थ तथा छन्द आदि से सम्बन्धित ग्रन्य सम्मिलित किये जा सकते है। इनका विस्तृत विवेचन हेमचन्द्र की रचनाओं के विवेचन के सन्दर्भ मे किया जायेगा।
1 प्रच., श्लोक 96 2 वही, 98-100 3 वही, 101-111 4. वही, 112-115