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[ 289 पायप्पहणो=कुक्कुट पादप्रहण । पासारिणो = साक्षी पार्श्वनीत । पिच्छी = चूडा 'चोट) Lपुच्छ-स्वय पुच्छ शब्द की ही सस्कृत मे नदिग्य स्थिति है। पुडणी = नलिनी[पुटकिनी । पुग्राइणी = पिशाचगृहीता/पिशाचिनी या पूयादिन् । पूग्राई = तरुण उन्मत्त , पिशाच पिशाच । पैनाल = प्रमाण (माप) Lप्राय । बुपकरणो = काक बुक्कन । बुदीरी = महिपः। वृद्ध । वोपपाडे - छाग ।वर्कर । भारोच्य = तालफल भार-उच्छ्य । गल्ल क्षाभल्लक - यह शब्द निश्चित रूप से सस्कृत की
सम्पत्ति नहीं है। गुनकरणो = ण्वा, मद्यादिमानबक्कन । मट्टो = अलस मृज् त-हिन्दी की बोलियो मे आज भी मट्ठर,
घालसी अर्थ में प्रचलित है । शब्द के प्रयोग का वाताबरण ही बताता है कि यह लोक-भाषा का शब्द रहा
होगा। मम्मरका = उत्कण्ठा/मर्म । मयलवुत्ती = रजस्वला (मलिनपुरी) । मरालो = अलस Lमराल । मुहालक्सो - तरुण..महालक्ष्य । मेली = सव या सभा मेल या मेला । रिट्ठो = काक अरिष्ट । रोमराइ = जघन (नितम्ब) रोमराजि । रोट्ट = तन्दुलपिष्ट । रुच्य । लयापुरिवो = यत्रपद्माकारवधूलिख्यते। लतापुरुप । वइरोडा = जार पति-रोट वइवेला = सीमा/वेला । वो = गृध्रपक्षी/वृक। वहुधारिणी = नववधू । वधू । वैनल्ल = मुदुवैकल्य ।