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________________ [ 283 नर मे चालू रहकर अपभा में और उनके साहित्य मे समाविष्ट हो गये तो उन्हे 'देशी' ही समझाना चाहिए । स्वय हेमचन्द्र ने अनेक शब्दो मे सस्कृत व्युत्पत्ति की सभावना मममते हुए भी देशी होने का प्राधार अर्व-परिवर्तन ही समझा है । उदाहरणार्थ 'प्रधा' पद पवाची दिया गया है (1-18) । हेमचन्द्र लिखते हैं। -अन्यश्चासाबन्ने तिविग्रहे गर भवो प्रघ धु शब्द. केवल सोऽन्धकूपावाची। प्रयतु कूपमात्र. वाचीतील निबद्ध । त्योगादिकमधु शब्दमिच्छन्ति तैरपि सस्कृते प्रयोगादर्शनादय नग्राध एव ।" कहने का तात्पर्य है कि यदि अन्ध अन्धु में कर्मधारय समास और परम्प ना अनुम्बार का घनिविकार मान कर अध धु शब्द को पूर्णतः तद्भव मदपीकार पर भी लिया जाय तो भी उसका अधा कुप्रा (जलरहिन कूप) यह विशेष प्रर्य ही होगा। अपर म मे इसका अर्थ सामान्य रूप है, प्रत इसे देशी मानना चाहिए । पर्यविस्तार का यह उदाहरण है। यदि वैयाकरण उणादिगण मे अघ घु पदको मिद्धि कर लेते हैं तो भी इन शब्द का सस्कृत भाषा मे प्रचलन में नही, प्रत देणी गन्द मे गहण करना चाहिए। इसी तरह अपभ्र श मे अइराहा-विद्यु त, है। जय हेमनन्द्र लिखते है- "पाराहा इति त्वचिराभाशब्दभव" अर्थात् प्रहाग प्रचिराना वर्णव्यत्यय द्वाग निष्पन्न तद्भव होता है । यह शब्द देशी इसलिए है कि मम्कृत-कोग में नहीं घोर न विद्य त पर्थ मे सस्कृतभाषा मे प्रयुक्त है । एक और उदाहरण प्रयोच्ची है । इस शब्द का अर्थ 'पुष्पलावी' (फूल चुनने वाली) है । 'प्रामाणि उच्चिनोति' इम व्युत्पत्ति से यह मस्कृताभ शब्द या तद्भव शब्द बडी प्रागानी से बन सकता है, फिर भी सस्कृत शब्द नही, क्योकि 'फूल चुनने वाली' अर्थ सम्पत में नहीं है । हेमचन्द्र तो उनने मतर्क हैं कि वे कहते हैं, 'यदाम्र पुष्पाण्येवोच्चिनोति तदा न देशी' प्रर्यान् अबोच्ची का 'ग्राम्रपुष्प ही चुननेवाली' यह अर्थ कर लिया जाय तो इमे देणी नहीं कहना चाहिए । हेमचन्द्र सस्कृताभ से व्याकुल नहीं होते । मम्कृत भाषा मे मामान्य फूल चुनने वाली, यह अर्थ-विस्तार नहीं था, अत. इस शब्द को देशी समझा गया । अनेक बार सस्कृत कोश मे किसी शब्द को देखकर भ्रान्ति हो जाती है कि वह सस्कृत शब्द है । यद्यपि वह अन्य भाषा या प्राकृत से पाया हुया होता है । भ्रमर के पर्यायवाची शब्दो मे रोलव दिया हुआ है (दे ना 7-2) | हेमचन्द्र टिप्पणी करते हैं " .. रोलब शब्द केचित् सस्कृतेऽपि गतानुगतिकया प्रयुञ्जते" अर्थात् गता. नुगतिक पद्वति पर रोलव शब्द मस्कृत में चला गया है अन्यथा देशी शब्द है । "... • ......"अण्णाण' देशी शब्द का अर्थ दहेज है, पर मुर्खतावाची 'अण्णाण' शब्द अज्ञान का तद्भव है (दे ना. मा. 117 पर वृत्ति), एक सी वर्णानुक्रमणी होने से दोनो एक
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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