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276 1 अवतार को ध्यान में रखते हुए शब्दार्थ नम्बन्च का निर्धारण और उसके अर्थ विकास का विचार हो प्रय-विज्ञान का विषय है। इन्ही सिद्धान्तो के आधार पर देशीनाममालाको दाबली का अर्थगत अध्ययन यहा अमाप्त है। इस कोण मे सकलित
मावलीमा तो पूर्णतया लोरव्यवहार नान पर आधारित है। दे. ना. मा. की नारी का सम्बन्ध अनादि प्रवृत्त प्रातक नापा (लोक मापा) में है। इसमे मचित शब्द युग पुगो में वीर मापात्रो में प्रचलित रहे हैं । जान्त्रो में प्रयुक्त न होने के कारण
न्य नबीन पद्धति पर नहीं किया जा सकता। इनकी महत्ता केवल या अन्चन भी दृष्टि में है । यह अर्थनिर्धारण भी पूर्णतया शब्दो के लोकव्यवहा ग्राश्रित है। देखने में इम कोश के अनेको शब्दो मन और प्राकृत (माहिकिनमेलगते है, पर इनवा अर्थ मस्त और प्राकृत के अर्थविकास से नहीं जुड पाना । उनले प्रर्य का नियामक तो लोक ही है। लोक में प्रचलित इनके प्रयोगो को पर ही उन अयं का निर्धारण किया जा सकता है। यही कारण है कि प्राचार्य हेमचन्द्र इन गब्दो को किमी एक युग विशेष की भाषिक सम्पत्ति न मानते नया नम्बत अनादिप्रवृत्त लोकमापा से बताते है
..." "तस्मादनादि प्रवृत्तप्राकृतनापाविशेप एवाय देशीशब्दो नोच्यत नि नातिव्याप्नि.11
इन अनानव्युत्पत्तिक गब्दो का अध्ययन केवल अयं की ही दृष्टि मे किया
है । बत्रामा और पदात्मक दृष्टि से दी गयी इनकी युवत्ति अत्यत भामर हात्याम्पद मी लगती है, अतः अर्थ-विमान की विविध दिशाम्रो को घामपाही नपा अध्ययन किया जाना उपयुक्त होगा।