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प्राया
274 ] कणिका, गोमणिग्रा-मोटी, दुििद्धणिग्रा-दुधहँडी, पडिच्छिना-प्रतिहारी। इन्गी- दुम्मइगी-फलहशीला स्त्री, दु दुमिणी-रूपवती पुत्राइणी-पिशाचगृहीता,
पुडाणी-नलिनी ।
फेलाया-मातुलानी मयामलामा-सारिका । प्राई- वणमबाई -कोकिला जाई-मुरा । अई- वाई-वृक्षपक्ति , जीवयमई-मृगाकर्षण हेतु व्याधिमृगी (5) कृदन्तीप्रयोग
देशीनाममाला की शब्दावली में भूत कृदन्त तथा भाववाची कृदन्त के प्रयोग ही देखने में प्राते हैं । उनके उदाहरण नीचे दिये जा रहे है नूतकृदन्तप्र प्रा मा या यत
प्रचनिय-प्रनिफलिन, अज्मवसिग्र-दाढी मूछ से सफाचट, अछिप्रयाट, प्रोनिवियत्र -गनिव्याघात प्रौमिरित्र -घ्रातम् कडततिन-दारित त्यादि। गमग मनी विशेषणपदो में जो ग्रान्यातज हैं। इस प्रत्यय का व्यवहार देखा जा
नवन
ग्रागिन (प्रमित जगा उत्ती/जनायुक्त.- ग्राम प्रधानपुरप । दिप्रधुनीपार , दिग्दन - दोपहर का भोजन । भारतामा प्रगा प्रा मा या अन
331 उदभातनम् (पादि में पटोग्ना), उज्झना, प्रोज्झमरणक्पलायनम् अपने पाणी पुट-लेपन -नृता, मुटिअपेगगा--ब्राह्मण का भेजा जाना छिक्कोग्रणोपमान , मि. महा-विवाह ।