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________________ ___ 268 ] .--"न निर्वदा उपमर्गा अर्यान्निराहरितिकाशटायन । नामाख्यातयोगे कर्मोपनयोगद्यातकाभवन्ति । उच्चावचा पदार्था भवन्ति इति गार्य ।"1 पाणिनि ने प्रियायोग मे ही उपसर्ग सज्ञा स्वीकार की और यह माना कि उससे योग में बलात् धात्वर्थ अन्य प्रतीत होने लगता है । सस्कृत मे प्र, अप, स, निर्, दुर प्रादि प्रमुन्न 22 उपसर्ग माने गये । इनकी अपनी अर्यवान् मत्ता तो है ही, सज्ञा या धातु में जुडकर ये उनका अर्थ भी बदल देते हैं । म भा प्रा मे प्रा भा या के उपनगों का ध्वनिपरिवर्तन के साथ प्रयोग किया गया । शब्दो के आदि मे जुड़ने के वारण उन्हे पूर्वसर्ग (prefix) भी कहा गया है। गदग्नामिक अध्ययन की दृष्टि में ये प्राव पदनाम है जो कि युक्तपदग्राम में जुडकर उसमे अर्थ परिवर्तन कर देते है । वाधुनिक भाषा वैज्ञानिक इन्हें पूर्व प्रादपदग्रामो अर्थात् पूर्वप्रत्ययो की सज्ञा से अभिहित करते हैं । देणीनाममाला की शब्दावली में भी इन पूर्वप्रत्ययो या उपसर्गों के प्रयोग देने जा सकते हैं । यहा प्रयुक्त उपसर्ग पूर्णतया म भा या के उपसर्गों का अनारा परते हैं। पसम - पहाण प्रतिष्ठान, पउत्यप्रोधित (गृह), पएमो/प्रातिवेश्मिक , परिहयो प्रतिहस्त आदि । प्रम ,प्रप- प्रवगा/अपाह ग, अवहानो अपभोग, अवरत्तयो । अपरचत । प्रबाप्रय- अवगियो अवगणित,अवअण्णे अवहन् । प्रवप्र- प्रवत्तय प्रवृत् । प्रोपिन नव-याघ्रात, प्रोढ प्रवदग्ध, पोहत्तोपत्त, प्रोसित्त Lप्रमिालम् । प्रोप्राप्रप- घोडाप्रपोप्रपातप. (प्रयाप्रमो), শহিঙ্গা গণ্য प्रा- योगीनाउन शीर्ष । मामा- अनीतु:, अणुमृग्राम ! fro- गिनियमन, लिपी निकृति दम्भ ), गि प्रमनियत, गिउपको निम्म । } :~-7-113 2 7 14 दिन 111159 7 घाा बलाद यननीयी-प्रहाराहा महार FI -f... यान्त्रिा ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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