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पतन्य वजन
ऋक् प्रातिशास्त्र के अनुसार स्पर्श तथा ऊम वर्गों के वीत्र में स्थित वर्ण अन्नाम्य वर्ग है । य, र, ल, व-इन चार वग्गों को अन्न स्व बताया गया । इन्हे प्रद्धंबर भी कहा जाता है क्योकि इन उच्चारणा का प्रारम्भ स्वरस्थिति से होता है और अन्त में ये अागामी बर और वजन की स्थिति में चले जाते हैं । य का मप्रमाण 'ड', व का उ र का ऋतया ल का ल इनकी स्तरावना को और भी मट कर देता है । म न पा मे इन अर्द्ध स्वगे में केवल 'य' और 'व' का प्रयोग मिलता है । उनमें भी '' प्राय श्रुनि ध्वनि के रूप मे ही व्यवहत हुग्रा है। म भा. प्रा में प्रौर का प्रयोग लगभग मणप्न ही हो गया । अत र और ल प्रर्द्ध स्वर न रहकर पूर्ण व्य न ध्वनियों के रूप मे घवहन होने लगे । देशीनाममाला के शब्दो में व्यवहन इन पन्त न्य ध्वनियो का विस्तृत विवेचन इस प्रकार है
कार यह कहा जा चुका है कि 'य' श्रद्धं म्बर है म भा पा मे इसका प्रयोग बनम अजन के कर में न होकर पति के रूप मे हुमा है । इसके साथ हीपरप्रपवादी (मे अब मागधी यादि) को छोडकर शब्दो के प्रारम्भ मे इसका पयोग भी नही हुया है । म भा प्रा का प्रारम्भवर्ती य 'ज' हो गया है । यह 'ज'
जन ध्यान ये विवेचन में स्पष्ट किया जा चुका है । दे. ना मा के शब्दो मे भी 'घ' को मिपनि पृगंम्पेग म भा पा पा अनुगमन करती है । इन शब्दो मे 'य' का प्रयोग मन्यवनी और उपान्य स्थितियों में प्रायः श्रुति के रूप में हुया है । कुछ
मपाती-- अनि
गणयमो-विवाहगरा क (2-66), जीवयमई-मृगाकर्षणहेतुाघमृगी 13.46),
नापटिपा अगुनीयम (5-9), पायड-प्रदानम् (6-40) । मान्य-व-(ति)
गुज्य-निम् (2-71), गुग्ग य-मागद कमणिनम् (2-109) नाम (3.6), नमाय-ग्राम् (5-2) |
शोकामपा
'ब' 7 प्रयोग गुद दन्योप्ठ व्यजन 'ब', 'व' श्रुति तथा