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[ 235 ठानिनी (प्राप्ठे मस्कृत कोश) ग्रादि जो शब्द हैं वे भी देश्य ही लगते हैं । यहा यह ध्वनि प्राय. दन्त्य व्यजनो के मुघन्यकृत रूप मे ही मिलती है । म मा श्रा में भी यह प्राय: मून्यकृन स्प मे ही अवहृत हुई है जैसे सस्कृत की 'स्था' धातु प्राकृत मे 'ठा' हो गयी है। दे ना मा मे 'ठ' ध्वनि से प्रारम्भ होने वाले कुल 9 शब्द
जिनमे कुछ ही शब्दो जैसे ठल्लो-निधन (4-5), ठिवक-शिश्नम् (4-5) मे ही यह ध्वनि शुद्र हप ने मिलती है । शेप शब्दो मे इसकी शुद्धता सदिग्ध है । इन सभी को 'न्य' के मधन्यीकृत रूप में देगा जा सकता है। पारम्भव स्थिति7 मा प्रा 8-ठरिय-गौरवित (4-6), ठिविश्न-ऊर्ध्वम् (4-6) । प्रा मा प्रा. स्थ76-ठविप्रा-प्रतिमा । स्थापिता (4-5), ठाणिज्जो-गौरवित
स्थानीय (4-5) ठाणो-मान स्थान (4-5)। मन्यवर्ती चिति-'' श्री 'ट्ठ' प्रा भा. आ. -ठ- फटकु ची- गले मे बधे वस्त्र की गाठ (2-18), कठिनो दौवारिक:
(2-15)
घ7ठ " गेंठमो-दक्ष स्थल के वस्त्र की गाठ यन्थि (2-13) मध्यवर्ती 'ट्ठ' मे प्रतिनिहित हैप्रा मा पा -सत-ऊहह । उपहसित (-1-140), प्रौहट्ठो। उपहसित (1-153)।
,, -स्थ - चदहिया-भुजशिसर।चन्द्रस्थिता (3-6) । ,, -ष्ठ- पिट्ठ त-गुदा-पृष्ठान्त (6-49), सुरजेठो-वरुण
सुरज्येष्ठ (8-31) , ,, -प्ट- रिटो-काक Lअरिष्ट (7-6) पीलुढ़ जलाहुमा/प्लुष्ट (6-51) , ,, -4- पत्तटो-बहुशिक्षित प्राप्तार्थ (6 69)। गन्दो के उपान्त मे 'ठ' ध्वनिग्राम अपने सर्वथा शुद्ध रूप मे प्राप्त होता है-जैसे
कठो-सूकर (2-51) गुठी-घू घट (2-90), गुठो-अघमय (2-91)
मेठी, मेठो (6-138)। 'ट्ठ' - ग्रगुट्ठ-अवगु ठव (1-6), णिविठे-उचित (4-34) 'दहिट्ठो
कथित्य. (5-35)।
उदाहरण के इन दोनो शब्दो की ध्वनिग्रामिक शुद्धता सन्देह से परे नही है। इन्हें मर्धन्यीकृत रूप में भी लक्षित किया जा सकता है। मारम्भवर्ती शुद्ध 'ठ' ध्वनिग्राम ठल्लो और ठिका दो ही शब्दो से मिलता है।