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________________ [ 207 कातिर दिवाली नि दे० 5-41 रूप में भी मिलता है। -- प्रौप्यमानीग, पूर्णवृत्तगुनी पाच तथा सवृत स्वर है। दे ना मा यो मायाध, मध्य प्रौद अन्त्य तीनो रूपो मे प्रयोग हुग्रा है । इसकी प्राय नि प्रयोग बात बोटे है, विशेष रूप से 5 देश्य शब्दो, पात, ar, म, चीन और हणु में ही प्रगती अन्त्य स्थिति मिलती है। प्रो7 उ र पदोन ग. मिरोह-जग-गुमच्च ८ कुरोन्य (दे. 2-63) । औ7 उ ( फ .-2133) प्र.73 (3 श्रअ : जुक' दे 1188) आदि प्रयोग '' यर पनि प्राग मी नियति को देखते हुए, दे ना मा के शब्दो का नम्बन्ध 'सार बरला' प्रपन्न श से जोड़ पाना सर्वथा असम्भव सा लगता है । मानमाारान पुस्लिग शब्दो में विसर्ग के स्थान पर प्राय 'उ' का प्रयोग हुआ प्रारमी में 'यो' का प्रयोग होता रहा है। देशीनाममाला के पुल्लिग शब्द अधिबाल धोकारान्त है, विसर्ग स्थानीय 'उ' का सर्वथा प्रभाव है। इसका विस्तृत दिन प्रागे यथा त्यान किया जायेगा। ___-दीपं उच्चारण के अतिरिक्त इसकी सारी विशेषताएँ 'उ' जैसी ही । ना मा के शब्दो मे शुद्ध ' का प्रयोग आदि मध्य पोर अन्त्य तीनो ही सिनियों में सुप्रा है। तद्भव शब्दो में इसके परिवर्तित रूप भी मिलते हैं । पही प्र (जगत्यो ।अस्वस्य. दे 1-143) कही ऊL प्रा (कृसारो L कासारो दं 2-44) ही . [व (असलिय । उल्लसित दे 1-141) अादि । (ए) कण्ठनालव्य, प्रवृत्तमुसी शिथिल, अग्र, अर्घविवृत स्वर है । म का मा प्रार्यभापानी में इम स्वर ध्वनिग्राम की स्थिति लगभग सभी विद्वानो ने स्वीकार की है। इसमें लिए कोई अलग लिपि चिह्न न तो पहले ही था और न अाज ही है । इसे 'ए' स्वर ध्वनिग्राम का ही एक सस्वन (ए) कहा जा सकता है। दे. ना मा के शब्दो में ऐसे किसी भी स्वर ध्वनियाम का उल्लेख नहीं मिलता फिर भी सयुक्ताक्षरो के पहले का 'ए' स्वरग्राम (ए) के रूप मे उच्चरित होता हैं1-जैसे पिशेल ने सफेत किया है कि प्रापत फाल मेहस्य ए, मो ध्वनिया थी (प्रा व्या 841119) इन ए ओ का विकास ऐ, ओ६, उ, फाई स्रोतो से हुआ देखा जाता है तथा सयुक्त व्यजन पनि के पूर्व हरव ए , मो नियतस्प से ह्रस्व (विवृत) उच्चरित होते हैं । डा टगारे ने भी अपन शकाल मे हस्थ एमओ पी सत्ता मानी है। (439) तथा इस बात का भी सकेत किया है कि उत्तरी हस्तलेखो में प्राय इन्हे 'इ' 'उ' के रूप में लिखा जाता है। डा. याकोवी ने भी इसका उल्लेख "मयिसयत्त पाहा' की भूमिका में किया है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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