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________________ [ 185 (55) खुट्टःत्रुटितम् (विशेपण पद) दे ना मा - 2-14 - हिन्दी में प्रचलित ध्वनिवानी 'खुट' शब्द जैसे 'खुट' से टूट जाना या 'खट' शब्द - जैसे 'खट' से गिरना (इसमे भी टूटकर गिरने का भाव निहित है), इसी प्रकार ब्रजभाषा में प्रयुक्त 'खुटकना' (तोडना) तथा अवधी मे 'कुटुकना' (तोडना) क्रियापद, ये सभी उपयुक्त शब्द से ही विकसित हुए होगे । ग्रामीण वोलियो मे इनका प्रयोग वाहुल्य ही उनके 'देशीत्व' को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। वालको द्वारा व्यवहृत 'खुट्टी' (करना) शब्द भी इसी से सम्बद्ध किया जा सकता है । (56) खोट्टी - - दासी - मज्ञापद) दे. ना मा. 2-77 - हिन्दी तथा उसकी वोलियो मे व्यवहृत 'खोट' 'खोटी' 'खोटा' प्रादि पद इसी शब्द से विकसित कहे जा सकते हैं । हेमचन्द्र ने 'खोट्टी' शब्द का प्रयोग 'दासी' के अर्थ मे किया है । दासियो में निहित बेईमानी तथा दुष्टता की भावना के कारण आगे चलकर यह सज्ञापद लक्षण या विशेषण के रूप मे व्यवहृत होने लगा होगा । ब भा. सू के, पृ. 352 पर इस शब्द को सस्कृत 'खोट' से निष्पन्न मानकर तद्भव की कोटि मे रखा गया है, परन्तु 'खोट' शब्द का सस्कृत शब्द भण्डार से सम्बद्ध होना भी सदग्धिता से रहित नहीं है । पाइअसद्दमहण्णव मे भी इस शब्द को 'देश्य' ही माना गया है । (57) खोसलयो - दन्तुर (विशेषण पद) दे ना. मा 2-77 – हिन्दी मे 'खूसट' तथा अवधी मे 'खोसडा' शब्द इसी के विकसित रूप होगे । ये शब्द 'असभ्य' या 'भद्दे पन' का अर्थ देते हैं । कही-कही आक्रोश मे कहे जाने पर इनसे नपु सक का अर्थ भी ध्वनित होता है । हेमचन्द्र 'खोसलनो' का अर्थ बड़े दाँत वाला या भद्दा व्यक्ति देते हैं । आगे चलकर हिन्दी मे इसका अर्थ-विकास हो गया और यह भद्दे पन या बुद्ध पन के अर्थ मे चलने लगा। (58) गड्डरी-छागी (सज्ञापद) दे ना मा 2-84 - हिन्दी गडरिया 'ब्रज तथा अवधी' गडेरिया जातिवाची पद इसी शब्द से सबद्ध किये जा सकते हैं । 'गड्डरी' (भेड या बकरी) का पालन करने के कारण ही बाद मे व्यवसाय के आधार पर एक जाति का नाम ही 'गडरिया' पड गया। (59) गड्डी - गन्त्री (सज्ञा-पद) दे ना मा. 2-81 - हिन्दी तथा लगभग उमकी सभी बोलियों मे 'गाडी' शब्द 'वाहन' के अर्थ मे प्रचलित है। पजाबी में तो यह ज्यो का त्यो प्रचलित है । सस्कृत 'शकट' या 'गन्त्री' शब्दो से इसकी व्युत्पत्ति सम्भव नही है । इसके विपरीत कन्नड मे 'गाडि' शब्द इसी अर्थ मे मिलता है प्रत बहुत कुछ सम्भावना है कि यह आर्येतर भाषाप्रो की सम्पत्ति हो।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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