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[ 183 सामान्य दिनो में भी पानी ढोकर लाने वाले 'नौकर' का वाचक है । पालकी आदि ढोकर ले जाने वाले नौकर को भी कहार' ही कहते है। यही शब्द आगे चल कर कर्म के आधार पर निर्मित एक जाति विशेष का वाचक बन गया ।
(45) कुक्कुसो-धान्यादितुप (सज्ञापद) दे ना. मा. 2-36 – हिन्दी 'कनकूकम' मुहावरे का 'कूकस' शब्द 'कुक्कस' का ही विकसित रूप है । अवधी मे यह शन्द 'कुक्कुस' या 'कूकुस' दोनो ही रूपो मे प्रचलित है ।
(46) कु दरो - कृश (विशेषण पद) दे ना मा 2-37 – हिन्दी मे यह शब्द "कुद' रूप मे ज्यो का त्यो प्रचलित है। अर्थ भी लगभग वही है - जैसे कुन्द बुद्धि-वाला (मन्द या कमजोर बुद्धि) व्यक्ति ।
(47) कुल्लड ~~ लघुभाण्डम् (सज्ञापद) दे ना मा 2-63 – हिन्दी तथा उसकी बोलियो मे व्यवहत होने वाला 'कुल्हड' शब्द इसी से विकसित है । यह शब्द 'मिट्टी के छोटे बर्तन' का अर्थ देता है । अवधी के कुछ ग्रामीण क्षेत्रो मे 'कोहला' शब्द भी चलता है।
(48) कोइला - काष्ठाडगार :- (सज्ञापद) दे. ना मा 2 49 - मानक हिन्दी में 'कोयला' अवधी मे 'कोइला' आदि रूपो मे यह शब्द आज भी प्रचलित है । हिन्दी मे इ का य (यण विधान) हो गया है, परन्तु अवधी मे यह शब्द ज्यो का त्यो 'ओ' के उच्चारण को हलका कर 'कोइला' के रूप मे चलता है।
(49) कोल्हुप्रो - इक्षुनिपीडनयत्रम् (सज्ञा) दे ना मा. 2-65 - हिन्दी तथा इसकी सभी बोलियो मे प्रचलित 'कोल्हू' शब्द इसी से सवद्ध है । 'कोल्हू' एक यत्र विशेप है जिससे ईख और तेल की पेराई की जाती है । पहले यह पत्थर का बना हुअा होता था।
(50) खट्ट ~ तीमनम् - (विशेपणपद) दे ना मा - 2-67 - हिन्दी तथा उसकी सभी वोलियो मे व्यवहृत 'खट्टा' विशेपणपद इसी का विकसित रूप है। सू. भा को पृष्ठ 320 पर 'खट्टा' पद की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'कटु' शब्द से दी गयी
यूरोपीय भाषाओ की प्रतिनिधि भापा अग्रेजी मे भी ' शब्द का मिलना यह सकेतित करता है कि यह मलभारोपीय भाषा का शब्द होगा । सू. व भा को 300 पर इस शब्द को तद्भव मानकर 'कोकिल' शब्द से इसकी अतिहास्यास्पद व्युत्पत्ति दी गयी है। तमिल मे 'कोल' क्रिया पद जान से मार डालने के अर्थ मे मिलता है। प्राचीन काल मे अपराधियो को पत्थर के कोल्हओ मे पेरवाकर मरवा डालने की अनेको कथाए मिलती हैं । इस तथ्य को दृष्टि रखते हुए तमिल' के कोल' क्रिया पद से इसका सम्बन्ध जोडा जा सकता है।