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(22क) उन्बुक्क-प्रलपित - (सज्ञापद) दे ना मा 1-1 28 - हिन्दी तथा उसकी सभी बोलियो मे प्रचलित 'बुक्का' शब्द जैसे 'वुक्का फाडकर रोना, इसी शब्द से सम्बन्वित है।
(23) उम्मडा - (मज्ञा) बलात्कार - दे ना मा. 1-97 - हिन्दी तथा उसकी सभी बोलियो मे प्रचलित 'समड' विशेपण पद या 'उमडना' क्रिया पद इसी से विकसित होंगे। जैसे 'समड-घुमड' कर वरसना 'नदी खूब उमड़ कर बह रही है। आदि । इन दोनो ही प्रयोगो के कारण अन्तराल में' 'बलात्कारेण कार्य सम्पन्न होने की भावना निहित देखी जा सकती है।
(24) उन्बायो-खिन्नार्य-~-दे ना मा -1-102-व्रजभापा और अवधी की 'ऊवना' क्रिया भोजपुरी की 'उवना' क्रिया या बना इसी शब्द से विकसित होगी। अवधी कोश मे इस क्रिया को 'पोवा' नामक बीमारी से सम्बद्ध बताया गया है । 'पोवा' नामक बीमारी से भी लोग बहुत अधिक घबरा उठते हैं, फिर भी इमसे 'कवना' क्रिया का सम्बन्ध बनाना उपयुक्त नहीं है। 'योवा' पद अाज भी अवधी
और भोजपुरी मे 'अोवा' (भयानक आपत्ति जो एकाएक आती है) के रूप में प्रचलित है । अत. 'अोवा' से 'ऊवना' क्रिया का सम्बन्ध जोडना ठीक नही । दूसरी ओर यदि इसे तद्भव मानकर संस्कृत के "उदृस' शब्द से व्युत्पन्न बताया जाये तो भी अनेको कठिनाइया आयेंगी। हिन्दी का 'ऊवना' या 'उवाऊँ' शब्द 'देश्य' 'उन्बापो' के अधिक समीप है।
(25) औच्छिकेशविवरणम् दे ना मा -1-150-'बजभाषा मे प्रोछना' तथा अवधी मे 'पोइटना' क्रिया पदो के रूप में इमका विकास देखा जा सकता है । द्रजभाषा मे इसका मूल अर्थ 'वाल-झाडना' सुरक्षित है - मूग्दास ने 'पोछन गुहत ...............' आदि रूपो मे इसका प्रयोग किया है। अवधी में इमका थोडा अर्थ विकास हो गया है - जैसे 'गड्या कोएर प्रोडछ लइ गइ ।' यहा प्रोडछना' पद 'कोई वस्तु झटके से खीच लेने का अर्थ देता है । वाल भी खीच और झटक कर ही माफ किये जाते है । क्रिया वही है मात्र अर्थ विकास से विशिष्ट न रह कर सामान्य बन गयी है । अब फिर प्रश्न उठता है कि यह शब्द 'देशज' कैसे है - म में भी 'उछि - (मि को 1-230) ~क्रिया विद्यमान है । उसका भी अर्थ 'पोटना' या 'माफ करना है', फिर इस शब्द को इसी धातु से व्युत्पन्न क्यो न किया जाय । इस विवाद को मिटाने के लिए हमे अन्य प्रार्य पूर्व भारतीय भापायो की ओर जाना पड़ेगा। यह शब्द तमिल में उरिञ्जु (साफ करना, मिटाना) कन्नड में 'उछु' के रूप में मिलता है। संस्कृत के पहले की भापात्री के