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________________ ___176 ] (12) उक्कामिया-उत्थित-(विशेपण पद) दे ना मा 1-114 हिन्दी 'उकमाना' ब्रजमापा 'उक्रमन' 'कमनि' तथा अवधी 'उमकाना' या 'हुसकाना' प्रादि पद इमी ये विक्रमित हुए होगे । विकास की इस प्रक्रिया के अन्तराल में अर्थ साम्य और ध्वनि-माम्य दोनो ही पग्लिक्षित किया जा सकता है। उक्कामि-उपकाम-उकस 'ना' हिन्दी का क्रियावाची प्रत्यय - उकसाना । अवधी मे वर्ण विपर्यय से उकसानाउसकाना-दुमकाना । (13) उक्खली ~ पिठर (मनापद) दे. ना मा 1188 - अवधी मे 'पोखरी', राजस्थानी ब्रजभाया और भोजपुरी में 'पोखती' 'उबली' 'पोखरी' और 'पोखडी' तथा बुन्देली में 'उखरी' शब्द 'उपखली' शब्द के ही विकमित रूप हैं। (14) उक्कु डो ~ मत्त (मनापद) दे. ना मा 1-91 - हेमचन्द्र ने इमका अर्थ मदमत्त या घमण्डी बताया है। हिन्दी तथा उमकी सभी बोलियो में व्यवहृत 'गुण्डा' 1 शब्द इम शब्द का विकसित रूप कहा जा सकता है । क का ग में परिवतन तथा प्रारम्भिक स्वर का लोप मध्यकालीन भारतीय आर्य भापायो के लिए ममान्य बातें हैं । उक्कु ड तथा उसके विकमित रूप 'गुण्डा' दोनो का ही सम्बन्ध यहा बहुत प्राचीन काल मे रहने वाली वर्वर एवं स्वेच्छाचारिणी 'गोड' जाति से जोडा जा सकता है । हेमचन्द्र ने इसी प्राशय का एक अन्य शब्द 'गुन्दा' (दे ना. मा 2110) अवम या नीच के अर्थ में दिया है। अरबी मे 'गोन्द' या 'गुन्द' शब्द सिपाही के अर्थ में आया है। राजघराने के मिपाहियो का स्वेच्छाचार और उनकी दुष्टता सर्वविदित है । हो मकता है वाद में अत्याचारी मिपाह्यिो के ममान ही पाचरण करने वाले व्यक्ति का नाम भी 'गोद' या इसी का विकमित रूप 'गुण्डा' पढ गरा हो । मेरी दृष्टि में 'गोर्ड' जाति में इसका सम्बन्ध दिखाना उचित होगा। (15) उच्च टो, उच्छट्टो ~ नत्रीयम्, चोर (मनापट) दे ना मा 1-101 ये दोनो शब्द चोरी करने मे अत्यन्त पटु व्यक्ति के अर्थ में पाये है । हिन्दी का 'छंटा' गन्द - (जैम' खेटा हुया बदमाग) म्यप्ट ही इन दोनो शन्दी मे विक्रमित हृया होगा। (16) उच्दु - भवत्रौर्यम् (मनापद) दे ना. मा. 1195 - चोरी करते समय भयभीत रहने वाले अक्ति का अर्थ देने वाला यह शब्द 'योचा' पद के प्रामाषा रोप, 400 पर 'गष्ट्रा' गन्दी ममत के 'गण्टक (मनिन) गब्द में यत्पन्न बनाया गया है । 'मटा' मन्दी यह व्युत्पति वन व्यत्पनि दिखाने के लिए ही दी गयी उगती है। मम्न मा 'गदर' मदनी दण्य' प्रकृति का है। इस णन्द की भी टॉप पाटकर मम्कार युक्त किया गया हाा मतप से यह मन्द 'देश्य है तनव नहीं।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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