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________________ 162 ] होगा परन्तु वहा जाकर वे व्याकरण सम्मत बना लिये गये होंगे। इस कथन की पुष्टि पारिणनि के 'उणादि' प्रकरण के अनेको प्रत्ययो के स्वरूप तथा उनके वातुपाठ मे देशी घातुनो के सस्कृतीकरण को देखकर म्वय ही हो जाती है । इस प्रकार बहुत प्राचीन काल से ही साहित्यिक मापाए अनेको जनभाषा के शब्दो को ग्रहण करती चली प्रायी हैं ।। इनना ही नहीं यदि यह भी कहा जाये कि भिन्नमिन्न युगो मे माहित्यिक मापानी का स्वरूप निर्माण इन जन भाषायो के आधार पर होता आया है तो कोई अत्युक्ति न होगी। यह पहले ही प्रतिपादित किया जा चुका है कि देशी "शब्द और बातुएं इन्ही भिन्न-भिन्न कथ्य मापायो मे उद्भूत हुई हैं । निष्कर्प प में 'पाइअसहमहणणयो' की भूमिका मे पाया यह कथन उल्लेखनीय है ___"जिन प्रादेशिक देगी भापायो से ये सब देशी शब्द प्राकृत साहित्य मे गृहीत हुए हैं वे प्रथम स्तर की प्राकृत मापाग्रो के अन्तर्गत और उनकी समसामयिक हैं। विस्त-पूर्व पप्ठ शताब्दी के पहले ये मव देशीमापाए प्रचलित थी, इमसे ये 'देश्य' शब्द अर्वाचीन नहीं हैं किन्तु उतने ही प्राचीन है जितने वैदिक गन्न ।" ! इस निष्कर्ष में इतने सशोवन की आवश्यकता है कि अनेक देशी शब्द वैदिक भाषा के समकक्ष हो सकते हैं और तदनन्तर बाहर में आने वाली विभिन्न जातियों के साथ प्रागत भाषानो ने भी समय-समय पर इन शब्दों की मन्या बढाई है। (ब) 'देशी' शब्द का प्रार्यतर भाषाग्री से उद्भव ~~ अाधुनिक भापा वैज्ञानिको में अधिकतर यह मानते है कि "देशी" शब्दो का उद्भव प्रार्यतर जातियो की शब्दावली के ग्रहण के कारण हुआ होगा। यह लगभग सर्वमान्य मत है कि आर्यजाति भारत में प्राक्रामक जाति के रूप मे पायी । यहा पाकर इसका सम्पर्क पहले से रहने वाली जातियो से पड़ा होगा। इस सपर्क के बीच भाषा गत आदान-प्रदान होना मर्वया मभव है। अत टन 'देशी' शब्दो में अधिकतर शब्द कोल, मथाल, मुण्डा, निपाद, द्रविड आदि जातियो की भाषा में लिये गये होंगे। ये जातिया अायों के भारत पाने के पहले ही से यहा निवास कर रही थीं। अव हमे प्रायनिक प्राविद्याविशारदो के द्वारा व्यक्त किये गये विचारी को देखना है। प्राकृत और देशी शब्दो के उद्व के विषय में ग्रार काल्डवेल ने विस्तार 1 पास मह महायो' प्रयम मम्मरण-योदवात, प. 22 भारत का मापा मवेक्षण, मुण्ड ] नाग | हिन्दी अनुवाद, हा उदयनारायण तिवारी मूल नेमा मर जार्ग नियमन के पाठ 223 वी पाद टिप्पणी न पर ।। भार साल्टो' काम्पेटिव ग्रामर आप वीडियन रेग्वेजेज' (लांगमेन्म, लहन 1856) 3
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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