SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | 155 प्रकृति के विपरीत हैं। इनका प्रयोग भी सस्कृत मे कम ही हुआ है। परन्तु वे ही शब्द प्रा० प्रा० भाषायो मे थोड रूप परिवर्तन के साथ उसी अर्थ मे चल रहे हैं। इस समस्या पर एक अन्य अध्याय मे विस्तारपूर्वक विचार किया जायेगा । ग्रियर्सन के वाद आधुनिक भाषा वैज्ञानिको मे उपाध्ये तथा पी० एल० वैद्य प्रभृति अनेको विद्वानो ने देशी शब्दो के आदि स्रोतो को ढूढने का प्रयत्ल किया है । उपाध्ये ने 'देशीनाममाला' मे आये हुए कई शब्दो को 'कन्नड' भापा से सम्बन्धित बताया है । इसी तरह के प्रयत्न और भी अनेको विद्वानो ने किये हैं परन्तु द्रविड भाषाओ या अन्य पार्येतर भाषामो मे इन शब्दो का पाया जाना यह विल्कुल नही सिद्ध कर पाता कि ये शब्द उन्ही से लिये गये हैं। हो सकता है भार्येतर जातियो ने ये शब्द आर्यों से ही ग्रहण किये हो । आधुनिक खोजो के आधार पर यह सिद्ध होता जा रहा है कि 'देशीनाममाला' मे आये हुए अनेको शब्द और हेमचन्द्र द्वारा धात्वादेश के रूप मे पठित देशी धातुए प्रा० भा० प्रा० भाषाओ की प्रान्तीय बोलियो मे अव भी प्रचलित हैं । पी एल वैद्य ने ऐसे ही अनेको शब्दो को 'मरहठी' भाषा मे प्रचलित बताया है। इसी प्रकार के तथ्य का उद्घाटन प्रस्तुत पक्तियो के लेखक ने अपनी विभागीय शोध संस्था के तत्वावधान मे पढे गये शोधपत्र मे भी किया है। लगभग 150 'देशी' शब्दो को 'अवधी' आदि हिन्दी की बोलियो मे उसी रूप और अर्थ मे प्रयुक्त होते दिखाया गया है जिस रूप और अर्थ मे वे 'देशीनाममाला' मे सकलित किये गये हैं । इन तथ्यो को देखते हुए जार्ज ग्रियर्सन का यह मत कि इन देशी शब्दो मे अधिकतर शब्द पार्यों की ही प्रारम्भिक बोलियो से लिये गये है ठीक लगता है। इनमे कुछ शब्द निश्चित रूप से मुण्डा और द्रविड भाषाओ के हैं जिन्हे प्रार्येतर प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है । परन्तु अधिकतर शब्द निश्चित ही प्रार्यो द्वारा अनादिकाल से व्यवहृत होती आयी जनभाषा से लिये गये होगे । श्रा मा आ. भापामो मे इनका विकास इसी तथ्य की ओर सकेत करता है । अन्त मे पाइअसहमण्णवो के उपोद्घात मे दिये गये देशी' शब्द के विवेचन को उद्धृत कर देना भी 1. ए एन उपाध्ये 'कन्नडीज वईज इन देशी लेक्सिकन्स'-एनेल्स आफ भण्डारकार ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट जिल्द 12, 4 171-72 2 पी एल वैद्य 'आब्जर्वेशन्स आन हेमचन्द्राज देशीनाममाला' एनेल्स आफ भण्डारक मओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, जिल्द 8, पू 63-71 वही, पी एल वैद्य । 'शोध सस्थान' हिन्दी-विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय के तत्वावधान मे 17 मार्च 1969 को पढाया गया 'हिन्दी और उसकी बोलियो मे कुछ देशीशब्द 'शीर्षक शोध-पत्र । 5. 'पाइअसद्दमहण्णवो' उपोद्घात-प्रथम-सस्करण, पृ. 21-22 ।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy