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[ 151 "देशी" कहे जाने वाले शब्दों की संख्या कम है। पिशेल आदि विद्वानो ने हेमचन्द्र की इस देशी विषयक मान्यता को ठीक नहीं बताया है। इनके द्वारा सकलित किये गये शब्दो मे शुद्ध रूप से लगभग 1500 शब्द ही देशी है। शेष तद्भव और तत्सम है जिनका संग्रह प्राचार्य ने कोशो मे उनकी अप्रसिद्धि तथा पूर्व प्राचायो की मान्यता के प्राधार पर किया होगा । पी० एल० वैद्य ने हेमचन्द्र की "देशीनाममाला" मे सकलित शब्दो को 8 भागो मे विभाजित किया है।
(1) ऐसे शब्द जो दिये गये अर्थ मे ही संस्कृत मे जा ढूढे सकते हैं। जैसे अहिविण्ण (प्रगिविण, दुखी निराश) अइहारा (अचिरामावर्ण व्यत्यय मात्र) 'प्रामि ग्रन (प्रायासिका) खुलह (गुल्क) प्रादि ।
(2) ऐसे शब्द जिनका मूल संस्कृत मे खोजा तो जा सकता है परन्तु उनका वह प्र नहीं है जो प्राकृत मे है। जैसे अरुण-कमल (प्राकत) लाल (सस्पत) गहवइ-गृहपति-(सस्कृत पति या स्वामी, प्राकृत, चन्द्रमा ।
(3) प्राकृतो का स्वरूप धारण किये हुए सस्कृत शब्द-जैसे एक्कघरिल्ल (4) प्राकृत शब्द या तद्भव शब्द ।
15) संस्कृत के उपसर्गों से युक्त प्राकृत शब्द - जैसे चिल्ला-उचिल्ला, फेसाउफे फसा, चल्लि-उचल्लिअ, वुक्का-उब्बुक्का ।
(6) संस्कृत के स्वरूप के प्राकृत शब्द-जैसे, अण्णा, अन्णी ।
(7) प्राकृत शब्दो का तोड़ा मरोडा गया रूप-जैसे खट्टा-खट्टिक्का, गोणा-गोणिस्का , घर-धरिल्ली ।
(8) प्राकृत और सस्कृत शब्दो के मिश्रण बने शब्य जैसे खोडपजल्ली, गयसाउल्ल आदि । प्राण निक भाषा वैज्ञानिकों का मत
प्राचीन व्याकरणकारी और भापाविदो की भांति आधुनिक भाषा-वैज्ञानिक भी प्राकृतो की शब्द सम्पत्ति को तीन भागो मे विभाजित करते है (1) तत्सम (2) तद्भव (3) देश्य या देशज । यहा केवल "देश्य" या "देशी" कहे जाने वाले शब्दो पर विचार करना अभीष्ट है । आधुनिक भाषा वैज्ञानिको मे जानबीम्स, हार्नले, जार्जग्रियर्सन, सुनीतिफुमार चाटुा, पी० डी० गुणे आदि ने देशी 1. पी0 एल0 वैद्य 'आब्जर्वेशन आन हेमचन्द्राज देशोनाममाला',-'एनेल्स आफ भण्डारकर
ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट' जिल्द 8 4067-68 2 “Prakrit words with Prakrit terminations" P L Vaidya
A.BOIR V8 P 68