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________________ 112 _1121 गले और वक्षस्थल पर धारण किये जाने वाले प्राभूपण' "देशीनाममाला" मे सकलित प्राभूपणवाची शब्दो मे इस कोटि के ग्रामूपणो का उल्लेख अत्यन्त स्पष्ट रूप मे हुअा है। गले मे इस कोटि के श्राभूषण पहने जाने के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली धातुप्रो का सकेत भी लगभग मिल जाता है । इस कोटि के शव्द इस प्रकार हैं अझोलिया 1-33-- यह मोती का बना हुआ एक प्रकार का हार होता था जो गले से पहिना जाकर वक्षस्थल तक झूलता रहता था। इसे आजकल बनने वाले मुक्ताहारो के समान ही समझा जाना चाहिए । इसी प्रकार के मोती के हार के लिए एक दूसरा शब्द गेण्हिन 2-94 भी पाया है। मोने की जजीर मे वीव कर व गले मे धारण किये जाने वाले एक प्राभूषण विशेप का उत्लेख चड्डुलातिलय 3-8 शब्द मे हुआ है। पिशेल के अनुसार यह एक रत्न होता था जिसे सोने की जजीर मे बोधकर गले में धारण किया जाता रहा होगा। दण्डी 5-33 से एक ऐसे प्राभूपण का सकेत मिलता है जो सोने के तागों या तारो से बनता रहा होगा परन्तु इस अर्थ से अलग इसे दण्डाकार - दो वस्त्रो को जोडकर सिये गये वस्त्र का वाचक भी माना गया है अत इमे आभूपण की कोटि मे रखते हुए भी हेमचन्द्र सदेह प्रकट कर देते हैं । एक जगह हिंडोल 8-76 शब्द मे कोणकार विविध रत्लो से युक्त माला का उल्लेख करता है जो सम्भवत धनी वर्ग के लोग धारण करते रहे होंगे। एक अन्य शब्द नेज्जल 2-94 भी गले में धारण किये जाने वाले प्राभूपण के अर्थ मे पाया है। इन प्राभूपणो के अतिरिक्त सामान्य वर्ग के लोग कोडियो तथा साधारण पुष्पो से बनी हुई मालाए भी गले मे पहिनते थे । कोडी से बने आभूषण के लिए इस कोश मे उल्लरय 1-110 शब्द प्राया है। सीमान्त-प्रदेश के वासियो तथा आदिवासियों में इस तरह के प्राभूपणो का आज भी प्रचलन देखा सकता है । पुष्प मालानी के लिए खेली 3-31, परिहच्छी 6-42 दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं। इन शब्दो के अतिरिक्त कुछ ऐसे शब्द भी सकलित हैं जो पुस्पो द्वारा धारण किये जाने वाले विशिष्ट प्राभूपणो का उल्लेख करते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत प्रामपण मक्कडबध 6-127 है। यह एक प्रकार का मोने का बना हमा जनेऊ होता था जिसे पुष्प वर्ग के लोग (विशेषतया ब्राह्मण) वाये कन्धे के ऊपर आज भी ग्रामीण जीवन मे विवाह के अवसर धनीवर्ग के लोग वर को सोने का जनेक उपहार में देते हैं । यह उपहार या तो 'वरिच्छा' के अवसर पर दिया जाता है या वर को कन्या के पिता के घर, प्रथम आगमन पर गणेश पूजा (द्वारपूजा) के समय कन्या के भाई और पिता द्वारा वर को धारण कराया जाता है। परन्तु यह प्रथा प्राय मिटती जा रही है।
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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