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________________ __100 ] अलकारो की प्रायोजना, यद्यपि मायास नही है, फिर भी इनके सौन्दर्य में कोई कमी नही ग्राने पायी है । उदाहरण की इन 'गायायो की रचना हेमचन्द्र ने केवल शब्दो को कण्ठस्थ करने के लिए किया था। परन्तु लोकजीवन मे सम्बन्ध रखने के कारण देशीशब्दावली से युक्त कविता उच्चकोटि की साहित्यिकता अनायास ही आ गयी है। अलकारो की दृष्टि से 'रयणावली' के मयोग और वियोग वर्णन से सम्बन्धित पद्य विशिष्ट हैं, इनमे, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अर्यालकारो का बहुत सुन्दर प्रयोग हुया है । रूपक और उपमा अलकारो का एक मिला-जुला प्रयोग द्रष्टव्य है कुन्तल उडुछण्णण जणणयण उंबखाय व । मयणेण उरे रइअ तुह उच्च उ बगोरङ्गि ।। 1 68186 11 'केशराशि तृणो को परिवारण (घोखा) है, नयन मनुष्यरूपी मृगो को बाधने के लिए जाल है। प्रारम्भ मे ही कामदेव द्वारा रचित गोराङ्गि । तुम पके हुए गोवूम की (कृपि की) भाति हो।' कुमार पाल की प्रशस्ति से सम्बन्वित पद्यो में अतिशयोक्ति अलकार का प्रयोग बहतायत से हया है। नीति और उपदेश के पद्यो मे अन्योक्ति, स्वभावोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि अलकारो का प्रयोग प्राय हुअा है । प्रकृति चित्रण से सम्बन्वित एक सुन्दर पद्य मे 'मानवीकरण' अलकार का प्रयोग दर्शनीय है मरणमणुवेण हरन्तो अणुदविफुल्लारविन्दमयरन्द । परिमलपारणग्वाणोव्व अगिल्लसमीरणी खिवइ ।। 1116119 'मन को बरबम हरण करता हुग्रा, श्रत काल के प्रफुल्लित कमलो के मकरन्दपान से तृप्त मा, प्रात समीर (धीरे-धीरे) बह रहा है।' अर्यालकारो मे नवमे अधिक प्रयोग उपमा, रूपक और अतिशयोक्ति का हुग्रा है । अन्य अलकारो मे स्त्रभावोक्ति का प्रयोग भी अधिक मात्रा में है । कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अलङ्कार प्रयोग की दृष्टि से भी रयणावली एक उच्च कोटि की माहित्यिक कृति है । अलकार इनके पद्यो में निबद्ध कोमल अनुभूतियो के सहज अनुचर है। निष्कर्ण ऊपर 'रयणावकी' के उदाहरण की प्रार्यानो मे निहित विषयवस्तु का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया । इसकी विषयवस्तु को देखते हुए यह बिना किसी सन्देह के कहा जा सकता है कि 'रयणावली' प्राकृत काव्य परम्परा की एक श्रेष्ठ काव्य कृति है और हेमचन्द्र एक श्रेष्ठ कवि । जहाँ तक 'पिशेल' जैसे विद्वानों को
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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