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यह तो हुप्रा प्राकृत के अपने छद "गाहा" का लक्षण । कोलबुक महोदय “गाहा" को सस्कृत से पाया छद बताते हैं ।' डा० गोरे ने "वज्जालग्ग" की प्रस्तावना के सातवें पृष्ठ पर गाथा का लक्षण दिया है । ऊपर दिये गये 'गाथा" लक्षण के अतिरिक्त एक अन्य लक्षण भी मिलता है
पढम बारहमत्ता, वीए अठारएहिसजुता ।
जहपढम तह तीन, दसपच विहूसिया गाहा ।।" इस परिभाषा के अनुसार जिसके प्रथम तथा तृतीय पाद मे क्रमश 12 मायाए , द्वितीय पाद मे 18 मात्राए तथा चतुर्थपाद मे 15 मात्रायें हो, वह छद 'गाथा' कहलाता है । सस्कृत के 'आर्या' छन्द का भी यही लक्षण है--
यस्या पादे प्रथमे द्वादशमात्रास्तथातृतीयेऽपि । अष्टादश द्वितीये चतुर्थ के पचदश मार्या ।।
"जिस छद का प्रयम चरण 12 मात्रा का (स्वर की लघुना एव गुरुता के परिमारण से) द्वितीय 18 का, तृतीय वारह और चतुर्थ 15 का होता है उसका नाम प्रार्या है ।" को नाक महोदय ने इसी के अाधार पर यह स्थापित किया था कि प्राकृत का 'गाहा' छद सस्कृत की प्रार्या से निकला है। परन्तु यह न कह कर यदि कहा जाये कि सस्कृत की प्रार्या ही 'गाहा' के आधार पर विकसित है तो अधिक उपयुक्त होगा। क्योकि प्राकृत का 'गाहा' छन्द अपने अनेको भेद प्रभेदो के माथ सम्कृत के छदो से अलग है। गाह, विगाथ, उद्गाथ, गाथिनी, सिंहनी आदि इसके उपभेद हैं । प्राकृत का 'गाहू' छन्द ही सम्कन ही प्रार्या है । 60 मात्रानो ( 12 + 18 +12 +18) वाली गाथा, जिसकी परिभाषा पहले दी गई है, गाथा का ही एक अन्य प्रभेद उद्गाथा है।
___ 'रयणावली' मे निबद्ध उदाहरण की गाथाएँ दो प्रकार की हैं । कुछ गाथाए 60 मात्रामो (12-1-18+12+18) वाली है और कुछ 57 मात्रायो ( 12 + 18+ 12+15) वाली सस्कृत की प्रार्यानो के लक्षण की हैं । 60 मात्रायो वाली गाथा का एक उदाहरण द्रप्टव्य है
12 'विप्रलिम उइ ततणाए सुण्ण उभालण कुणन्तीए । तह पुलइअमुच्छवि जह काउ सक्किमो ण उज्झमण || 1187110311
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1. सस्कृत एण्ड प्राकृत पोयट्री-एशियाटिक रिसचेंज 10वी जिल्द, पृ0 400