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महान् कार्य और महान् सेवा
श्री बी० बी० गिरि
राज्यपाल, केरल
तीन वर्ष पहले की बात है। मैंने कानपुर में प्रणवत-आन्दोलन के नवम वार्षिक अधिवेशन में भाषण दिया था तो मुझे इस मान्दालन का पूरा विवरण जानने का सौभाग्य मिना था। तभी से मैं प्राचार्यश्री तुलसी के उम महान कार्य और महान् सेवा से प्रभावित हूँ जो वह मानव जाति की भावी प्रगति के लिए नैतिक आधार स्थापित करने के लिए कर रहे हैं।
एक मशाल
प्राज दुनिया को नैतिक उत्थान की जितनी अावश्यकता है, उतनी पहले कभी नहीं थी। कोई राष्ट्र तब तक प्रगति नहीं कर सकता अथवा अपने को बलवान् नहीं कह सकता, जब तक उसके लोग उच्च आदर्शों का अनुसरण नहीं करते और सद्गुणी नहीं होते । जीवन के प्रति भौतिक दृष्टिकोण ने लोगों को स्वार्थी बना दिया है और भ्रष्टाचार एवं भ्रष्ट व्यवहारों; जैसे कि रिश्वतखोरी और मिलावट ने भारतीय जीवन को तबाह कर दिया है। आज हम मानव भवितव्य के चौराहे पर खड़े हैं। ऐसी स्थिति में जब कि हमारे पास युगों परानी परम्परागों और सांस्कृतिक मूल्यों की विरासत में मिली हुई निधि विद्यमान है, नव ममस्त अन्धकार को दूर करने के लिए केवल एक मशाल की अावश्यकता है। प्रणवतआन्दोलन वह मशाल है।
जैमा कि पानार्यश्री तलगी ने स्वयं कहा है, 'अणुव्रत-आन्दोलन जीवन के प्राध्यात्मिक और नैतिक सिंचन की योजना है। उसका उद्देश्य सामाजिक अथवा राजनीतिक हिन की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक है। वह उद्देश्य प्राध्यात्मिक कल्याण है और प्राध्यात्मिक कल्याण केवल मर्वोच्च श्रेय ही नहीं सम्पूर्ण श्रेय है। उसमें स्वयं के श्रेय और दूसरों के श्रेय दोनों का समावेश होता है।' नैतिक मूल्यों से उपेक्षित अर्थशास्त्र असत्य
आज हमने समाजवादी ढंग के ममाज को अपना राष्ट्रीय उद्देश्य स्वीकार किया है। मेरे विचार में यह केवल राजनीतिक अथवा प्राधिक नहीं है जिमके अनुमार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी उन्नति के लिए समान अवमर मिलना चाहिए और राष्ट्रीय प्रयास में भाग लेना चाहिए अथवा प्रत्येक नागरिक को कुछ-न-कुछ आर्थिक न्याय मिलना चाहिए, प्रत्युत ऐसा प्रादर्श है जो सर्वव्यापक है और राष्ट्र के प्राध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन को स्पर्श करता है एवं जिसका नैतिक प्राधार है। सन् १९२४ में गांधीजी ने 'यंग इण्डिया' में लिखा था, 'वह् अर्थशास्त्र असत्य है जो नैतिक मूल्यों की उपेक्षा अथवा भवहेलना करता है। प्रार्थिक क्षेत्र में अहिंसा के नियम के विस्तार का इसके अतिरिक्त कोई अर्थ नहीं होता कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का नियमन नैतिक मूल्यों के माधार पर किया जाए।'
भारतीय पद्धति के समाजवाद में जो गांधीजी का स्वप्न था व हमारा राष्ट्रीय ध्येय है। दूसरे कथित समाजवादी देशों के समाजवाद में यह अन्तर है कि हम अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए सत्य और अहिंसा पर सम्पूर्ण श्रद्धा रखते हैं जब कि अन्य समाजवादी देश शक्ति को नये समाज की प्रसव पीड़ा मानते हैं अथवा जैसा कि अन्य कुछ लोग कहते हैं, अण्डे को तोड़े बिना प्रामलेट नहीं बन सकता। विदेशों में जो लोग समाजवाद की कल्पना के पृष्ठ पोषक बने