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प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य
[ प्रथम
को भाता है। वह जाति और धर्म, लिंग और राष्ट्रीयता, शिक्षा और वातावरण के भेद से परे है। उसका सम्बन्ध शाश्वत गणों मे है जिनकी सभी युगों के धार्मिक पुरुषों ने महिमा बखानी है। प्राचार्यश्री ने चरित्र निर्माण कार्य को नई दृष्टि प्रदान की है और नैतिक श्रेष्ठता मे अटूट श्रद्धा ने चरित्र निर्माण की कला को एक रचनात्मक कार्य बना दिया है।
आध्यात्मिक दुष्काल और प्रात्म-शिथिलता के इस युग में अणुवन-मआन्दोलन ने जीवन की पवित्र कला को पनर्जीवित किया है। पशु की भौति जीवन बिताना, आहार, निद्रा और मैथुन में ही सन्तोष मानना कोई जीवन नहीं है। वही मनुष्य जीवित है जो धर्म के मार्ग का अनुमरण करता है। यह धर्म ही है जो मनुष्य की पाशविक वृनियों को देवी गणों में बदल सकता है। अतः हम सबको इम अान्दोलन का हार्दिक समर्थन करना चाहिए। उससे धार्मिक सौमनस्य उत्पन्न होगा, फट दूर होगी और सदभावना और प्रेम का प्रसार होगा।
समन्वयमूलक प्रावर्शवाद
आचार्यश्री तुलसी अणुव्रत-प्रान्दोलन से भी महान् है। निम्सन्देह यह उनकी महान् देन है, किन्तु यही सब कुछ नहीं है। उनकी प्रवृतियाँ विविध हैं और उनकी दृष्टि सर्वव्यापी है। उनका ममन्वयमूलक आदर्शवाद उनको सभी प्रवृत्तियों में नये प्राण फंक देता है, ऐसी प्रफुल्लता ला देता है जो बुद्धिगम्य प्रतीत नहीं होती। अगर दुर्गुणों का लोप हो जाता है तो संस्कृति का यागमन अवश्यम्भावी है। जब दुर्गण, बुराई और पतन नामशेष हो जाये तो संस्कृति का अपने आप विकास होता है।
वे प्राचीन भारत के अधिकांश धर्माचार्यों मे सहमत हैं कि इच्छा ही सारे दुःखों की जड़ है। ये उनकी एम गय मे भी महमत हैं कि जब इच्छा का प्रभाव नष्ट हो जाता है, तभी हम सर्वोच्च शान्ति और प्रानन्द की प्राप्ति कर सकते है।
कलकत्ता के संस्कृत कालेज में एक साध्वी ने संस्कृत में भाषण दिया था और हमें पता चला कि प्राचार्यश्री साधुसाध्वियों को शिक्षा देने में अपना काफी समय खर्च करते है। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान्, प्रोजस्वी वक्ता और गम्भीर चिन्तक है। वे अपने विचारों में अग्रगामी हैं । वे अथक उन्माह और अमीम श्रद्धा के साथ देश के कोने में मरे कोने तक अपना नैनिक पुनरुत्थान का मन्देश दे रहे है ।
बहुत काम हुअा है और अभी बहुत कुछ होना शेष है। हम कठिन कार्य में हम प्रत्येक भारत प्रेमी से हृदय में सहभागी बनने की प्रार्थना करते है। उत्थान के रोमे निरन्तर प्रयास मे ही कवियों और दार्शनिकों की महान भारत की वह कल्पना माकार हो सकेगी। भारतीय संस्कृति के इस मंरक्षक का मभी अभिनन्दन करते है। राजस्थान का यह मपूत दीर्घजीवी हो और अपने पावन ध्येय को सिद्ध करे।