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पाचार्यश्री तुलसी मभिमम्बन अन्य
[ प्रथम
लिए युगपन सबको अपनाना होगा; और जो प्रारम्भ में परम अणु प्रतीत होता रहा हो, वह अपने वास्तविक रूप में बहुत बड़ा बन जायेगा। इसी से तो कहा कि स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् । इसीलिए मैं कहता हूँ कि वस्तुतः कोई भी व्रत प्रण नहीं है। किसी एक छोटे से व्रत को भी यदि ईमानदारी से निबाहा जाये तो वह मनुष्य के सारे चरित्र को बदल देगा।
प्राचार्य तुलसी के प्रवचनों में तो बहुत लोग दीप पड़ते हैं, स्त्रियां भी बहुत-सी दीख पड़ती हैं । सेठ-साहकारों का भी जमघट रहता है । इसी मे मैं घबराता हूँ। हमारे देश में साधुओं के दरबार में जाने और उनके उपदेशों को पल्लेझाई विधि से मुनने का बड़ा चलन है। ऐसे लोग न पावें तो अच्छा है। सबसे पहले उन लोगों को प्रभावित करना है जो समाज का नेतृत्व कर रहे हैं । शिक्षित वर्ग को प्राकृष्ट करना है। इसी वर्ग में से शिक्षक, अध्यापक, डाक्टर, इंजीनियर, राजनीतिक नेता, सरकारी कर्मचारी निकलते हैं। यदि इन लोगों का चरित्र सुधरे तो समाज पर शीघ्र और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़े। मैं आशा करता हूँ कि प्राचार्यश्री का ध्यान मेरे इम निवेदन की प्रोर जायेगा। भगवान् उनको चिराय और उनके अभियान को सफल करे।