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ऐश्वर्य, प्रलौकिक श्रवणाई, इस सिन में टूटे ज्यू तामो ॥
इन सब वस्तुओं की नववरता की घोर ध्यान दिलाते हुए प्राचार्यश्री प्राणियों से एक बार फिर कहते है मर-देही व्यर्थ गमाई मां
वे व्यसनी लोगों को भी चेतावनी देते हुए कहते हैं :
भूलो मत पीवो रे भवियां भांग तमाशू । गांबी, सुलको, तिम साथ, जरदो मत झालो हाम बोड़ी, सिगरेट संघात त्यागो चाहो जो सुख सात भांग बाग few पोर्ट मोर्ट सिलाई छोटा-मोटा मिल संग । पौ र पाये हो मन की गोठ पुरावं, होवं कहि रंग में भंग ॥
भंगड़ी कहिवार्थ पार्व बुद्धि-विकलता, प्रार्थ चोह दौड़ 'फूल मालन-सौ करो' स्वमुख] सराहने, पावं फल जैसी फोड़
यहाँ 'फूलां मालण' की अन्तरकथा से दुराचारी और उसका समर्थन करने वाले को एक ही कोटि में रखने का संकेत मिलता है। कथा इस प्रकार है कि एक युवा रानी अपने झरोखे में बंठी राजमार्ग की शोभा देख रही थी। उसकी
ख उधर से निकलते एक सुन्दर युवक पर पड़ी। रानी उसके रूप पर मुग्ध हो गई। युवक ने भी रानी को देखा तो मोहित हो गया। दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए आतुर हुए। युवक ने फूलां मालिन को राजमहल में फूल ले जाते देखा । वह उसे समझा-बुझा कर उसकी पुत्रवधू बन कर महल में रानी के पास जा पहुँचा। रानी की कली कली खिल गई। अब तो युवक प्रतिदिन इसी रूप में रानी के पास पहुँच जाया करता था। एक दिन यह पाप का घड़ा फूट गया और राजा को पता चल गया । राजा ने रानी और युवक के साथ फूलां मालिन को भी मृत्यु-दंड सुना कर बीच बाजार में बैठा दिया । उसने अपने गुप्तचरों से कह दिया कि जो कोई व्यक्ति इनकी प्रशंसा करे उसे भी इनके साथ बैठा दिया जाये और अन्त में मौत के घाट उतार दिया जाये। उस रास्ते से कई लोग निकले, सबने बुराई की। एक ऐसा भी माया जो बोला 'मरना तो एक दिन था ही, प्रच्छा किया जो रानी के साथ रह कर जीवन का आनन्द लूट लिया।' जब गुप्तचरों ने उसे पकड़ लिया तो भागन्तुक ने पूछा- 'क्यों ?' उत्तर मिला 'दुराचार का समर्थन करने के लिए 'इसीलिए प्रथम प्रवेश के अन्त में प्राचार्यश्री तुलसी ने धनुरोध पूर्वक कहा है
प्राणी करणी निर्मत फोर्ज
'तुलसी' कामधेनु सम पाइ, मंजुल मानव काय, मूरत अब चिन्तामणि स्यूं, तूं मत नो काग उड़ाय ।
द्वितीय प्रवेश में पहुँच कर भी प्राचार्यश्री का ध्यान प्राणियों की पाप-मुक्ति की भोर ही विशेष रहा है। पाप और पुण्य का अन्तर मापने बड़ी सुन्दरता से चित्रित किया है। कहा है :
पुष्य पाप रा फल है परगट, जो कोई उचारं । एक मनोगत मोजा मार्ग, इस नए नगर बुहारी ॥
पाप मुक्ति का उपाय बताते हुए कहा है :
नर क्षमा धर्म धारो । प्राध्यात्मिक सुख-साधन हृदय रोष बारी ॥ श्रमण-धर्म जो दशविध जैनागम यावं । अंति धर्म तिण मांही, प्रथम स्थान पावे ॥